एक मुद्दत से कोशिश जारी तुझे भुलाने की,
बड़ी गंभीर बीमारी लगी हमें इस जमाने की,
न शकुन मिलता है न यादें मिटती है,
न तुम मिलते हो न मौत मिलती है,-
नहीं आता मुझको प्यार जताना फिर भी कोशिश करता हूँ,
अपने टूटे फूटे शब्दों से मैं फिर भी एक प्रयास करता हूँ,
अपनी चाहत के रंगों से मैं आज तेरा श्रृंगार करु,
मेरे प्यार की सुर्खी से तेरे कपोलों को लाल करू,
तेरे लबों की नमी को अपने लबो से तर करु,
तेरे गेसुओं की लटों को अपने कर पोर से ठीक करू,
तेरे आँखों की शोखी में काजल रात की श्याह भरु,
तेरे मुखड़े की ओजस आभा को अपने हाथों से छाव करु,
बन झुमके तेरे कानों के मैं नित्य प्रेम गीत सुनाऊँगा,
तेरी नथनी बन नाक की मैं दुनिया में इतराउंगा,
तेरी बिंदिया चमके मेरी प्रीत से हीरा भी शरमा जाये,
बन इत्र प्यार मेरा तेरा अंग अंग महका जाये,
बने मेरे शब्द तेरा लिबास जो तेरा अभिमान बने,
तेरी सेहत पर बुरा असर आ के पहले मुझ पर वार करे,
नहीं पता मुझको अब भी कैसे मैं इजहार करु,
अपनी वफ़ा का तेरे समक्ष कैसे मैं विस्वास धरु,
पसन्द आये जो ये प्रयास मेरा बस इतना तुम कर देना,
अपने दीदार में तुम पलकें झुका एक इशारा कर देना,
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पूछ कर की जाये तो मोहब्बत कैसी,
यादों से बिखर जाए तो फिर वफ़ा कैसी,
साथ पलों का ही हो पर हो खरा वफ़ा का,
वादे वे भूल भी जाये तो उनकी खता कैसी,-
विजय दिवस
16 दिसम्बर 71 की सुबह याद करता हूँ,
वीर जवानों की बहादुरी शहादत याद करता हूँ,
3900 सौ हमारे बलिदानी थे 1851 घायल थे,
93000 पाक सैनिकों पर वे तब भी पड़े भारी थे,
छुड़ा दिया था दम्भ उनका पैरों तले कुचल दिया,
लाहौर को जीत कर भी दान उनको कर दिया,
विजय दिवस के इस दिन पर दिल से नमन करता हूँ,
मैं भारत की सेनाओं पर पूरे सम्मान से फक्र करता हूँ,-
दर्द भरे जज़्बात का मेला लगा है,
जिसे देखों दर्द को झेले खड़ा है,
नहीं फुर्सत फिर भी किसी एक को,
जिसे देखो अंधी दौड़ में पड़ा है,
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लिखना बन्द नहीं किया हमनें,
बस अब जग जाहिर नहीं करता,
अभी जज़्बात नहीं मरे हैं हमारे,
बस अब उनको मुखातिब नहीं करता,-
तू भूगतेगा परिणाम दंभ का,
तेरा बुरा वक्त एक दिन तो आयेगा,
आज उठा ले भले आसमां घमंड का,
गरूर तेरा एक दिन तुझको जरूर तुझे रुलायेगा,
न रहेगा साथी कोई न कोई हाथ बढ़ायेगा,
साया भी साथ न देगा जब अँधेरा तुझे डरायेगा,-
अनजाने डर से घबरा रहा दिल,
पता नहीं क्यूँ डरा रहा ये दिल,
परेशानियों आती ही रहती है हर दम,
पर आज क्यूँ नींद उड़ा रहा है दिल,
ऐसा कभी न हुआ अब तलक जिंदगी में,
क्या नया गुल खिला रहा है ये दिल,
क्या कम थी हाल की महाभारत,
बदनामी,बेइज्जती, मजबूरी,
क्या मेरी बेबसी से घबरा रहा है ये दिल,-
बृह्मा ने सँसार बनाया विष्वकर्मा ने उसे सजाया,
कला कौशल का पाठ पढ़ाया तकनीकी विकास सिखाया,
आज उनके अनुयायियों का सम्मान ह्रदय से करता हूँ,
जिन्होंने उनके पथ को आगे और उत्कृष्ट बनाया,
आज भगवान विष्वकर्मा के प्रागट्य दिवस पर ढेरों बधाई-
जो लिख कर संताप मिटा सकते,
अंधेरों में प्रकाश अगर पा सकते,
मिट गये होते तमाम दुःख उनके,
जिनके कलमों को हम भुला नहीं सकते,-