भांति भांति भ्रांतियों से भरपूर,
मन मेरा मूढ़ मलिन मजबूर।
दर्द दे, दवा दे, देखो दुनिया दस्तूर,
क्या कहूं, क्यों, कैसे, कब हुआ कसूर।
मैं माना, मन मनमाना, मांगना न मंजूर,
जल जाए, जड़ जाए, जानना जमाना जरूर।-
I'm not fond of writing; but sometimes I wri... read more
It's always those two lines
that touch you the most—
the ones that need no context
from the narrator.
Those two lines are the
best descriptors of your
susceptibilities.
. .. .-
The cost of a loss depends
on its realized value.
Every rejection results in
some loss,
but what really matters is:
"What did it cost?"
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Logic-reinforced intuition
Back it up with some facts,
and you'll have a
promising theory.
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दो महीने हो गए अब,
लगभग रोज ही पार करते ये नदी।
चलते इस पुल पर,
घर से कॉलेज, कॉलेज से घर,
या कभी थोड़ा इधर-उधर।
पर अब ये पानी उतना डराता नहीं।
हां टिक नहीं पाता मैं अब भी,
इस पुल की रेलिंग पर।
पर थोड़ा सा छू कर चल लेता हूँ कभी कभी।
बहादुरी सी लगती है ये भी।— % &पहचानने लगा हूँ शायद।
थोड़ा समझने लगा हूँ।
इस बहते पानी को,
हवा के साथ चलने को आतुर,
पानी पर छोटी-छोटी तरंगों को।
कभी बढ़ा होता है पानी,
जब चाँद सर पर हो,
और रात का अंधेरा।
किनारे पत्थरों से टकरा कर,
आवाज करता कभी।
तब महसूस होता है थोड़ा,
सिरहन सी भी होती है कभी।— % &फिर समझाता हूँ खुद को,
कि वही पानी है ये,
जो दिन में मिला था।
वही तरंगें, वही हवा।
जानते तो हो इन सबको,
और शायद ये सब तुम्हें।
थोड़ा समय और लगेगा,
शायद,
बहादुर बनने में।
साथी तो हैं ही न तब तक,
मैं, पानी, तरंगें और ये हवा।— % &-
To every good,
or bad that persists,
you adapt.
Or sometimes,
get consumed.
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We don't really wish
for equality.
It is what we usually
settle for.
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Confrontation
is the best way
to closure
most of the times.
जो भाग कर सुकून मिल जाता,
तो मुझसे अच्छी नींद कौन सोता!
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मनुष्य (Human)
एक तूफान उमड़ा, विकट सा
आया उसकी ओर।
वो निडर, रहा खड़ा, रहा अडिग।
तूफान विकराल हुआ,
डगमगाया वो, पर हटा न पीछे।
फिर थमा तूफान, खड़ा वहीं वह,
सुभट कहलाया।— % &एक क्षण, कभी, फिर ऐसा आया,
सुभट का दिल भी दहलाया।
कुछ छूटा, कुछ टूटा,
कुछ असहाय हो गंवाया।
सह ना पाया, गिर गया, बिखर गया,
कभी सुभट वो, सुकुमार हुआ।
— % &फर्क क्या था, अवलोकक सोच रहे।
तूफान कमजोर था, या वो क्षण था भारी।
या बदला कुछ सुभट में,
समय की गति थी सारी।
क्या पता, क्या थी कहानी।
या शायद कुछ भी न थी।
नाम ही थे बस, लोगों के दिए,
कभी सुभट, कभी सुकुमार।
मनुष्य ही था साधारण वो,
कभी मजबूत, कभी तार।— % &-
The act of trying is not eternal.
(Barring a few exceptions)
And most of the times,
we know when it's a good time
to stop trying.
This is when despair plays
a positive role in our lives.
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