Danish Ali  
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Joined 26 January 2019


Joined 26 January 2019
3 APR 2022 AT 0:05

सहरी की मेहनत मग़रिब की अज़ान हूँ
में माहे रमज़ान हूँ में माहे रमज़ान हूँ

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23 JAN 2021 AT 14:54

मेरे जितने करीब आ रही हो तुम
उतना दूर होता जा रहा हूं में
क्या पता मुझसे क्या चाहती हो तुम
क्या पता तुमसे क्या चाहता हूं में
इस तरह मुझमे बहती जा रही हो तुम
अपने वजूद से अजनबी बन गया हूं में

इश्क़ की आग में जलना चाहती हो
क्या मुझसे प्यार कर रही हो
मैंने कब कहा था है इश्क़ में करार
किस के लिए खुद को बे करार कर रही हो
मिलेगा क्या तुम्हें सिवा इंतज़ार के
क्या कहा.. अब भी तुम मेरा इंतज़ार कर रही हो

फूल हो ना तुम तो महका करो जहां में
बे वजह अपने आप को खार कर रही हो
ग़मो के सिवा इश्क़ में मिलता कुछ नही
हसीन ज़िन्दगी को लाचार कर रही हो

तुम जो देखती हो वो ख्वाब में नही
चाहत के लिए खुद को बीमार कर रही हो
मर मर के जी रही हो क्या हो गया तुम्हें
इस कदर मोहब्बत सवार कर रही हो

मेरी मान जाओ मुझे भूल जाओ तुम
न तुम याद करो ना मुझे याद आओ तुम
जब में तुम्हें ज़िन्दगी-ऐ-राहत नहीं दे सकता
जब में तुम्हें मोहब्बत-ओ-चाहत नही दे सकता
अब तुम भी मुझे तन्हा कर जाओ यही अच्छा है
मेरी ज़िंदगी ग़मों से भर जाओ यही अच्छा है

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12 OCT 2020 AT 22:48

हर वक़्त तन्हा और गम में होना अच्छी बात नहीं
अच्छा सुनो एक बात सुनो रोना अच्छी बात नहीं

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6 OCT 2020 AT 1:59


हर मिसरे पे दाद दी जा रही है
खूब ग़म ख्वारी की जा रही है

तू तो हट गया चिंगारी दिखा कर
मुझसे पूछ कैसे जी जा रही है

नफरत है शराब से और रहेगी मगर
ग़म-ऐ-जुदाई में हर शाम पी जा रही है

सांसें रोकने का हुनर नहीं आता मुझे
अब जो सांसे हैं तेरे नाम की ली जा रही है

आज फिर हुआ शोर तेरी यादों का
आज फिर एक ग़ज़ल लिखी जा रही है

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13 JUL 2020 AT 22:39

ख्वाबों में ख्वाबों के महल बनाता रह गया
शमां की बुझने की ज़िद थी में जलाता रह गया

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14 OCT 2019 AT 1:22

उसको याद करना बस यही काम बिना शाम
में, मेरी तन्हाई और उसका नाम बिना शाम

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14 OCT 2019 AT 1:11

अब देखना है क्या दिखाएगी ज़िन्दगी
जाएंगे अब जहां ले जाएगी ज़िन्दगी

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9 SEP 2019 AT 16:03

पाने की ज़िद नहीं तुझे हां मगर खोने का गम है
कुछ हुआ नही है मेरी आँख में आज सच में नम है

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3 AUG 2019 AT 10:47

इस बात से बहुत शर्मिंदा हूं में
तुझसे दूर रहकर भी जिंदा हूं में

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17 JUL 2019 AT 11:13

सारी दौलत कम पड़ गई पल भर खुशी के लिए
और बचपन कागज़ की कश्ती को पार लगा देता था

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