ज़िंदगी से बहुत आरज़ू
नहीं है हमारी
बातें बनेंगी
बिगड़ति रहेंगी
तुम सामने रहो
उम्रें गुज़रती रहेंगी
कभी देखेंगे सावन
कभी रेत का समंदर भी होगा
फूलों का बगीचा भी होगा
सूखी पत्तियाँ भी बिखरती रहेंगी
तुम सामने रहो
उम्रें गुज़रती रहेंगी
कभी नाराज़ हो जाएँ हम
तो मना लेना तुम
तुम्हारी चुप्पी में
नाराज़गी झलकती रहेगी
फिर भी बस तुम सामने रहो
उम्रें गुज़रती रहेंगी
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