सुनो.. इस बार छोड़कर,
नही जाऊंगा तुम्हें..
है प्रेम इतना कि तुम्हारे आँचल,
से बंध सा जाऊँगा मैं।
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सुनो.. वो सादा है,
श्रंगार नही करता।
वो यूँही अच्छा लगता है, मुझे।
क्यूँकि वो, बेवज़ह का..
दिखावा नही करता।
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हर गरीब को मिल रहा,
अब निवाला है।
पता तो करो, क्या चुनाव आने वाला है?
हर गरीब के घर,
नेताओं का आना-जाना है।
पता तो करो, क्या चुनाव आने वाला है?
हर बात में विकास का,
अब बस नारा है।
पता तो करो, क्या चुनाव आने वाला है?
हर भाषण में,
मजहबी ज़हर का सहारा है।
पता तो करो, क्या चुनाव आने वाला है?
हर बात में अब,
हिन्दू-मुसलमान होने वाला है।
पता तो करो, क्या चुनाव आने वाला है?
हर तरफ नौकरियों का
अब बोलबाला है।
पता तो करो, क्या चुनाव आने वाला है?
हर तरफ नफ़रतों का
ही अब तराना है।
पता तो करो, क्या चुनाव आने वाला है?
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बहाने अच्छे होते है..
मग़र क्या सच्चे होते है?
कभी मासूम तो कभी दिखावे भी होते है,
पर सच कहूं तो ये बहाने अच्छे होते है।
टूटते बिखरते रिश्तों को
समेट लेने की कोशिश भी करते है।
सुनो ना, ये बहाने बुरे नही होते..
थोड़े अच्छे, थोड़े सच्चे होते है।
पूछकर तो देखो वो लोग
बहानों के पीछे क्यों छुपते है?
सच्चाई से इतर ये बहाने
झूठे दिलासे भी होते है...
हाँ ये बहाने थोड़े बुरे थोड़े अच्छे और
थोड़े-थोड़े से मासूम भी होते है।
और कभी-कभी ये बहाने
तेरी मेरी पहचान से होते है।
प्रेमरूपी पौधे को सींचते है, ये बहाने।
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सुनों यारों, एक
कहनी है मुझे अगर
तुम सुन पाओ, महसूस
कर पाओ।
वरना हर बार की तरह
अनदेखा कर भी दो,
तो कोई बात नही।
बस ये बात कहनी जरूरी
लगी मुझे।-
इस क़दर बेहिसाब दर्द सीने में छुपाना
भी अच्छा नही, यारों।
गले लगकर ग़र वो पूछे दिल का हाल
तो बता दिया करो।-
भुलक्कड़ सा मैं...
और तुम हर बार, हर बात याद दिलाती हुई।
मेरी आदतों में शामिल हो, अनुशीर्षक....-
हम भी..
दरिया थे, कभी।
फिर.. नदी से,
मिले हम कुछ
इस क़दर, कि..
क़तरा बनकर,
रह गए...
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हम-तुम दोनों चुप है,
तो आँखों-आँखों में
कोई बात होनी चाहिए।
किसी को ना ख़बर हो,
चुपके-चुपके से ऐसी
मुलाक़ात होनी चाहिए।
बारिश में भीगे हम-तुम,
सावन में ऐसी भी एक रोज़
बरसात होनी चाहिए।
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