मैं तुम्हारी रूह को छूना चाहता था।
मग़र आवाज़ आई क्यूँ?
और मैं तुमसे हमेशा-हमेशा के लिए जुदा हुआ।
अब मुझसे मोहब्बत ना होगी।
केतन भाई के लेखन से प्रेरित होकर लिखा,
अनुशीर्षक...-
एक हादसे ने तोड़ने की मुझे, कोशिश तो बहुत की।
मेरा जज़्बा है, कि मैं.. टूट कर बिखरता ही नही।-
वो आते है..
आते ही होंगे?
हमें क्या..
हमनें तो अब,
इंतज़ार करना।
छोड़ दिया...
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कौन है जो,
अपनों के दिए..
सितम से,
सताया ना गया?
किसी ने,
बयां कर दिया तो..
किसी से,
बताया ना गया।
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कुछ अनकही सी बातें कह देनी चाहिए।
ज़िंदगी सुकून से गुज़रती है..
सुकून कि.. दर्द दिल ही दिल में ना रिसे।
सुकून कि.. ज़ख़्म नासूर ना बने।
सुकून कि.. कोई तो सुनता है, उसे।
सुकून कि.. कोई तो वो आह सुने।
सुनो.. कुछ बातें कह देनी चाहिए..
क्यूँकि, गुज़रते वक़्त से मरहम की उम्मीद बेमानी है।
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ये जो तुम, लड़की कहकर हर बार बंदिशें लगाते हो,
अनजाने में ही ख़्वाहिशों को नया जज़्बा सा दे जाते हो।
ये जो तुम, अबला कहकर सांत्वना सी दे जाते हो,
रगों में हर बार नया सा जोश भी तो भर जाते हो।
ये जो तुम, हर बार कई तोहमतें भी यूँ लगाते हो,
कभी चेहरा अपना भी आईने में देखकर तो आते हो?
ये जो तुम, मेरे लिखे को अपना अमलीजामा सा पहनाते हो,
कभी झाँक कर ख़ुद के अंदर भी तुम देख पाते हो?
ये जो तुम, हर बार अपनी नज़रें मेरे तन पे यूँ गढ़ाते हो,
कभी शर्म से ख़ुद भी पानी-पानी क्यों ना हो जाते हो?
ये जो तुम, बेवज़ह अफ़वाह सी मोहल्ले में फैलाते हो,
क्यूँ बेवजह किसी की इज़्ज़त यूँ तार-तार कर जाते हो?
ये जो तुम, सवालों के घेरे में जब भी खुद को यूँ पाते हो,
क्यूँ हर बार निशाना किसी "स्त्री" को ही तुम बनाते हो?
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तुमसे प्यार नही होना था, यार।
सच.. हम यूँही दोस्त बने रहते तो, कितना अच्छा होता?-