अब तो नौकरी जैसे दिल को बहलाना है
जिन्दा भी रहना है और ज़हर भी खाना है
मर मर कर जी रहे है बड़ी मज़बूरी मे
उम्र कट रही है बस जी हुज़ूरी मे
हम वक़्त से बहुत पीछे है और आगे ज़माना है
पर जिन्दा भी रहना है और ज़हर भी खाना है-
एक शोर के बाद सन्नाटा था
जो आतंकियों ने बाँटा था
इस सन्नाटे मे एक दर्द है
जो बयां ये तस्वीर करती है
एक तन्हाई बिलखती है
यह तस्वीर मेरे देश से
इंसाफ की उम्मीद रखती है
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नियत का कोई धर्म नहीं
ना जात कर्म की होती है
जब इंसानियत ही काम ना आये
वो बात शर्म की होती है
मदद का कोई रूप नहीं
हर रूप मे मदद हो सकती है
बस सोच सही रखोगे तो
कोशिश सच हो सकती है-
रास्ते नहीं दिखते पर उम्मीदें दिख रही है
लेकिन वक़्त के हाथों मेरी साँसे बिक रही है
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बड़ी ग़फ़लत मे है की तू ज़िंदा है
तेरे सीने मे जो साँसे है वो चुनिंदा है
तेरी साँसे क़र्ज़दार है इस वक़्त की
साँसे छीनने और चुराने का इस वक़्त का गोरखधंधा है
बड़ी ग़फ़लत मे है की तू ज़िंदा है
जाने कब ये वक़्त छीन लेगा तुझसे ये साँसे तुम्हारी
जाने कितना क़र्ज़ है तेरे सर पर
इतिहास गवाह है इस बात का
चुकाया है ये क़र्ज़ सब ने ही मर कर
इसलिए तो मौत का भाव बड़ा मंदा है
बड़ी ग़फ़लत मे है की तू ज़िंदा है
तेरे सीने मे जो साँसे है वो चुनिंदा है
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शाही स्नान करने तुम भी कुम्भ के मेले गए थे क्या?
पुण्य कमाने गए थे या पाप धोने गए थे क्या?
मन मेला करके गए थे जो,
वो साफ करके आये हो क्या?
पाप धोके आये हो या पाप करके आये हो क्या?
रूह को भीगाया है या जिस्म से नहाके आये हो!
क्या पछतावे वाले आंसू गंगा मे बहाके आये हो!
या सिर्फ भीड़ का हिस्सा बनने गए थे तुम
या भेड़चाल मे दिखावा करने गए थे तुम
जो भगदड़ मे दब के मर गए
उसके तुम भी जिम्मेदार हो
तुम पुण्य से पहले पाप के हक़दार हो-
उम्र अपना किरदार ईमानदारी से निभाती है
मैं चलू या ना चलू पर ये उम्र निकले जाती है
वक़्त नहीं रुकता कभी, उम्र नहीं ठहरती
और ख्वाहिशे कभी संभाले नहीं सम्भलती
उम्मीदें सब खत्म होने तक भी ख्वाब दिखाती है
उम्र अपना किरदार ईमानदारी से निभाती है
मैं चलू या ना चलू पर ये उम्र निकले जाती है
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उम्र अपना किरदार ईमानदारी से निभाती है
मैं चलू या ना चलू पर ये उम्र निकले जाती है
वक़्त नहीं रुकता कभी, उम्र नहीं ठहरती
और ख्वाहिशे कभी संभाले नहीं सम्भलती
उम्मीदें सब खत्म होने तक भी ख्वाब दिखाती है
उम्र अपना किरदार ईमानदारी से निभाती है
मैं चलू या ना चलू पर ये उम्र निकले जाती है
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क्षण क्षण भर श्वास अंतिम है
यह जग कर्मो की खेती है
समय की अग्नि ललक भरी
काया को भस्म कर देती है
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अब तो लगता है जैसे उड़ान खत्म है सपनो की
वक़्त जाने कितनी और आहुति लेगा अपनों की
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