मुलाकात हमारी कुछ इस तरह हुई,
जैसे बंजर ज़मीं पर पहली बरसात हुई।
जैसे बहारों ने फूलों को बिखेरा हो कहीं,
तेरी मौजूदगी ने कुछ यूं दिल छू लिया,
जो ख्वाब है मेरा, मानो वो पूरा कर दिया ।।
तेरा चेहरा चमकता था चांद की तरह,
तेरे साथ पूर्णिमा मेरी हर रात हुई।
मुलाकात!! हमारी कुछ इतनी खास हुई।।
न जाने कैसे अजनबी से खास बन गई,
बिना हाल जाने तेरा, ऐसी कोई रात ना गई ।
चाहा तो बस कुछ पल तेरा साथ था,
न जाने कब ये चाहत मोहब्बत बन गई।।
मुलाकात हमारी कुछ इतनी खास हो गई।।-
मुलाकात हमारी कुछ इस तरह हुई,
जैसे बंजर ज़मीं पर पहली बरसात हुई।
जैसे बहारों ने फूलों को बिखेरा हो कहीं,
तेरी मौजूदगी ने यूं दिल छू लिया,
जो ख्वाब है मेरा,वो पूरा हो गया ।
तेरा चेहरा चमकता था चांद की तरह,
तभी तेरे साथ पूर्णिमा मेरी हर रात हुई।
मुलाकात हमारी कुछ इतनी खास हुई।।
न जाने कैसे अजनबी से खास बन गई,
बिना हाल जाने कोई रात ना हुई।
चाहा तो बस कुछ पल तेरा साथ था,
न जाने कब ये चाहत मोहब्बत बन गई।।
मुलाकात हमारी कुछ इतनी खास हुई।।-
मन में दबे हैं अनसुने सवाल बहुत,
जिनके जवाब भी खुद में समेटे हूं मैं।
हर चुनौती ने मुझे आजमाया है,
मगर अपनी हर सीमा से परे खड़ा हूं मैं।
वादा है हर कदम पर खुद का साथ निभाऊंगा,
गिरा जरूर, मगर हर बार संभल जाऊंगा।
हारा नहीं हूं, बस ठहराव लिया हूं मैं,
ज़िंदगी!इस सफर में बस थोड़ा धीरे चला हूं मैं।-
मुखौटा पहने यहां हर इंसान खड़ा है,
नाटक का कुछ ना कुछ किरदार लिए।
हरेक किरदार निभाना चाहा उसने,
हजारों मुखौटे का सहारा लिए।।
ज़िन्दगी का हर पल नाटक ही तो है,
जिसका हिस्सा हम बने ज़िन्दगी जीने के लिए।
जो भी किरदार है, उसने सारी शिद्दत से निभाया,
पर्दा गिरने के बाद भी तालियां सुनने के लिए।।-
समर शेष है
कठोरता इस समर का धर्म है,जहां गिरना- टूटना तय है पर याद रहे, कि-
गिरो कदम कदम पर मगर,
फिर खड़े होने का हौसला रख लो तुम।
टूटो हर पल हर दिन मगर,
फिर लड़ने की हिम्मत रख लो तुम।।
चुनौतियाँ आने दो लाखो भले,
रणभूमि को छोर ना भागो तुम।
यदि ये समर जीतना चाहते हो,
तो अब तलवार को यूं ना फेंको तुम।।
विचलित होकर, धीरज खोकर,
क्या कभी युद्ध किसी ने जीता है?
हर वार सहा जिसने खुद पर,
और रक्त से भूमि से सीचा है,
पराक्रम और धैर्य को जब अपनाया है,
तभी तो एक योद्धा ने समर को जीता है।।
अब योद्धा हो तो साबित कर दो,
तलवार उठा कर लड लो तुम।
हर पल ये समर का जीतोगे,
विश्वास ये खुद पर कर लो तुम।।-
Koi ghar se door hokar
Ghar ko yaad karta hai,
To koi ghar me rehkar bhi
Apnepan ki talash karta hai,
Koi yaha mehboob ki talash krta hai
To koi Ishq me hokar bhi
Ishq ki talaash karta hai,
Koi dost na hone ki kami mehsoos karta hai,
To Koi Hazaro doston se judkar bhi
Dosti ki talash karta hai,
Inn sari talashiyon me aadmi,
kaha khud ki talaash krta hai?
Wo Aaj zinda to hai par,
Kya kabhi Zindagi ki talash karta hai?
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You exist in the depths my heart's space.
A beautiful memory, a lovely face.
Your essence wafts through the air,
A gentle reminder of your presence, always there.
Deep within my soul, you reside,
A constant heartbeat, side by side.
In every breath, I feel your grace,
A soothing calm, a peaceful space.
Perhaps in memories, or dreams I hold,
Or in the rhythms that my heart does unfold.
Maybe you exist in the stories I tell,
Or the melodies that echo well,
In passions that drive me, or art that I create,
You're the inspiration that elevates.
You're the sunrise that paints the sky,
Bringing light to my soul, passing me by.
You're the warmth that I need in the night,
You are my Guide in the life's difficult flight .
You're the spring breeze that revives the earth,
Bringing hope, renewed birth.
With every challenge, you sweep away fear,
Leaving strength, and wiping away tear.
In the depths of my being, you reside,
A constant presence, always inside.
You exist in depths of my heart's space
A beautiful memory, a lovely face.
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