🪔हे नए साल...! तुम्हारा स्वागत है 2025 #...🫂
आशा और प्रार्थना है👏 कि हर चुनौतियों से पार पाने का सामर्थ्य ला रहे हो तुम।
जीवन के शेष काल को अवशेष होने से बचाने हेतु उसमें जीवंत ऊर्जा का संचार ल रहे हो तुम।।
हमें (ब्रह्माण्ड के अंश को) हर नकारात्मकता से बचा यूनिवर्स की सकारात्मक गोद में सहला रहे हो तुम।
सबके साथ-साथ मेरे जीवन में भी परमात्मा के आशीर्वाद का साकार अहसास ला रहे हो तुम।।-
....वो सबको जीतते - जीतते खुद को हारती
जा रही थी !
सिकंदर नजर आती रही दुनिया को जो,
....ना जाने कब से खुद को अकेले मारती
जा रही थी !!-
...........................खाली ही रहेगा !
जब तक कि अपनी पसंद के रंग चुन...,
मन के हर कोने को ना रंग दिया जाए !!
जब कोरा कैनवास मिल ही गया है...,
क्यूं ना इसी बहाने इसको रंगीन सपनो से भर दिया जाए !!-
"हालातों की आग"
कि जलता जा रहा है मिरा कतरा-कतरा यूं इस कदर....!
अब उखड़ता जा रहा है हर अहसास मन के कोने-कोने से दर-बे-दर...!!-
गुरु की कलम से...
कि अभी सीखना बाकी है, चल अभी स्वच्छंदता बाकी है..
अभी तो शायद भला जिया है, दिल सांसों के साथ जिया है!
जब समय जिया है सरगम का, बिन धड़कन जीना बाकी है
तू जिंदा तो है वर्षों से, अभी मर कर जीना बाकी है!!
लाड़ जिया और प्यार जिया, अपनों से भरा संसार जिया
जब दीप जले तेरी मेहनत के, वाह - वाही का स्वांग जिया!
तू चला जो हरदम दंभ भर के, अभी हल्के चलना बाकी है
क्यों रोते - बिलखते हो प्यारे, सांसों का छूटना बाकी है!!
सावन की झड़ियों में खेला, तू सर्दी की धूप नहाया है
हर घड़ी पड़ी हो बंद चाहे, पर समय बदलता आया है!
कड़की बिजली आकाश में अब, तूफ़ां में जीना बाकी है
क्या गुम हो चले रंग सारे, इंद्रधनुष चमकना बाकी है!!
May God Bless all of Us 🤞👏-
जो अच्छी हो अगर मेरे समाज की नजर...
परिवार मान की बेड़ी से मुक्त होंगी सब नारियां,
रीढ़ रहेगी औरत में भी तब कम होंगी परेशानियां!
उनके भी होठों के शब्दों का मोल बराबर तोला जाए,
शिक्षा की एक आई ड्रॉप जो समाज की आंख में डाली जाए!!
हर दिन - हर पल जहर फांक लेते हैं कितने ही हंसमुख चेहरे,
कुछ काट देते हैं गले अपनों के, इसी समाज के सहारे!
न जाने कितने ही बालिगों ने अपने गले में फंदे डाले हैं,
यहां मिडिल क्लास के हर मुखिया पर, लगे आन के तालें हैं!!
हाय नजर समाज की कैसी है, जे "चार लोग" हैं कौन?
कि देखता है समाज यहां जुर्म रात-दिन, फिर भी रहता है मौन!
...कि मनोकामना ऐसी है कि जादू सा कुछ हो जाए,
सामाजिक नजर लगे न काली, हाय नजर का टीका बन जाए!!
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एक कदम खुद की ओर
.....कि फेंक दूं उठाकर खुद को दरिया- ऐ- समंदर में किसी" कि छठ-पटाकर मैं फिर से तैरना सीख सकूं!!
ढल रही हैं मेरी शामें खाली हाथ, बहुत कुछ पाकर भी" कि चाहते लूट - लुटाकर भी, मुस्कुराते रहना सीख सकूं!!
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"पीरियड लीव"
एक धुआं सा उठा था, उस बात का...
कि रक्त बहना आम है यौनि से,
नहीं है उसकी कोई विकलांगता!
चूंकि हर नारी खुद को संभालने में, सक्षम ही है शायद...!!
चिड़चिड़ाती है, गुस्साती है, चिल्लाती है...
और कभी रो भी जाती है!
अपने मूड स्विंग्स का सामना, खुद ही कर जाती है!
अपनों के साथ होने पर भी 'मंथली साइकिल' में,
औरत अक्सर खुद को अकेला सा ही पाती है!!
चूंकि मासिक धर्म, सिर्फ उसी का है शायद.....!!
पर अफसोस तो मुझे बेचारे उन पुरुषों पर है,
जो दूर रहते हैं नारी की इन भावनाओं से!
और जी नहीं पाते जीवन के इस पवित्र लाल हिस्से को,
कहीं..., वो ही विकलांग तो नहीं शायद....!!
पीरियड लीव का तो पता नहीं, कभी मिलेगी भी या नहीं!
हां लिखी होती संविधान में भी शायद....
निर्माताओं ने मासिक धर्म को जो जिया होता कभी,
कहीं ये, उनकी विकलांगता तो नहीं थी शायद....!!
-D.Manisha "Only"-
कोई दोषारोपण में उंगली दिखाकर कहता है,
कोई मुझे 'समझदार' बताकर जो कुछ कह जाता है!
कहीं दुहाई होती है नासमझी की, 'कभी सारी गलती मेरी है' का बड़प्पन लोग दिखाते हैं!
लेकिन किसे समझाएं...और क्यूं?
कि हमने वहां से खुद को उठाया है, जहां लोग पंखे से लटक जाते हैं!!
क्योंकि कुछ अपने हैं जिंदगी में, जो मेरे खट्टे-मीठे लहजे को मुझ सा ही स्वीकारते हैं!
फिर हम हैं कि जिंदगी को बस जिंदा जीने कोशिश करते हैं!!-
"मेरा होगा"
मेरी काली रातों और बे-सुध दिनों का सूरज जब आर - पार होगा,
उसका भी गवाह सिर्फ मेरा ख़ुदा... बार-बार होगा!!
मेरे भागते समय और रुकी घड़ियों में जब ठहराव होगा,
मेरे कठिन घड़ियों में कटे जीवन का सुखद आभास होगा!
मेरे असमंजस मन-बैचेन दिल का जब बुरा हाल होगा,
मेरा दिमाग मेरे दिल से मिलनसार होगा!
मेरे कश्मकश्त विचारों की गुत्थी का जब तार-तार होगा,
मेरा आत्मविशास नींद तोड़ के मेरा किरदार होगा!
मेरे उलझे बालों और सूखे गालों में जब चिकनाव होगा,
मेरी थाली में मिले भोजन का मुंह में स्वाद होगा!
मेरी थकावटों और हरागतों का जोर जब चकनाचूर होगा,
मेरी राहतों और चाहतों का सिलसिला भरपूर होगा!
मेरी हिम्मतों और मेहनतों का जब दिशा- दिदार होगा,
मेरे नयनों पर ऐनक का मुकुट भार होगा!
मेरी कोशिशों का सिलसिला जब लगातार होगा,
मेरी डिक्शनरी में नई बुलंदी का चार - चांद होगा!
काली रातों और बेसुध दिनों का सूरज जब आर - पार होगा,
उसका भी गवाह सिर्फ़ मेरा ख़ुदा... बार-बार होगा!!-