अत्यंत अनंत पीड़ा सहकर,
नव जीवन का वो सृजन है करती।
अश्रुओं से सींच-सींच कर,
संस्कारों का है वो वृक्ष लगाती।
करुणा ममता प्रेम से सज्जित होकर,
दयाभाव की वो नदियां है बहाती।
विपत्ति विशेष में नवदुर्गा बनकर,
वीरों के वीर सा कौशल दिखलाती।
सम्पूर्ण नहीं बिन जिसके वैभव,
कोई और नहीं वो "माँ" कहलाती।
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