ओस भी तु, प्यास भी तु, शब्द संगम की व्यास भी तु ,
नैन भी तु, रैन भी तु, दूर भी तु, पास भी तु,
अर्थ भी तु, अनर्थ सी मैं, अर्ध चित् का संपूर्ण भी तु,
मर्ज़ भी तु, हकीम भी तु, हाल- ए- दिल का सुकून भी तु,
सजदा भी तु, क़ुरान भी तु, रसूल- ए- इश्क़ का फरमान भी तु,
इश्क़ तु, इबादत तु, चाहत तु, इस सपना का अरमान भी तु
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खुद वज़ह होकर भी, वो मुझसे वज़ह पूछता है
खुद वज़ह होकर भी, वो मुझसे वज़ह पूछता है
मैं पूछती हूँ, ऐसा पूछने की वज़ह क्या है!!
तुम तो जानते थे, ये रज़ा कैसी है
फिर भी ये सवाल पूछने की वज़ह क्या है!!-
होंठ सिल सिल कर भी, जज़्बात अपने छुपा ना सके
कहने को लाख कोशिश की पर कुछ बचा न सके
वो जो कहते थे हमसे की तुम मेरी हो
सिर्फ कहते ही रहे, कभी निभा ना सके!!-
अब क्या कहूँ! तुझको सोच कर सब कुछ भूल जाती हूँ
ये वर्णो की माला में कहाँ तुमको गूंथ पाती हूँ..
तुम तो दिल के अरमानो सा विस्तार हो, पावन सी एक धार हो..
मैं जोगी, दीवानी सी ; तुम मुझमे बहते प्रेम की हर धार हो
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ये गज़ल, ये फूल, ये शाख सारे तेरे कदमों के है पैमाने
जमाने को जमाने लग गए, मैं तेरा हूँ तुझको ये बताने
देखा है मैंने जमाने में जी कर वो बात नहीं
जो जी लूँ मैं तेरे बग़ैर, इतनी भी कुव्व्वत नहीं
न मज्हब, न अदब, न आदाब देखता हूँ
पांचो पहर तेरा चेहरा, मैं सजदे के बाद देखता हूँ
हिसाब न मांग मेरे गुनाहों की, मैं खुद को खो कर तेरे पास आया हूँ
मिला दे मेरे रब से ,मैं खुदा से मिलने तेरे पास आया हूँ-
तुझे देख लूँ तो सब अपना- अपना सा लगता है,
यूँ आँखें जो मोड़ ले तु; सारा जहाँ सपना सा लगता है...
तुझे सोच कर ही मुस्कुराने लगा है
सोच तेरे होने से क्या होगा!!
इश्क़ है तुझसे, निभा कर दिखाता हूँ
तुझे बताने से क्या होगा!
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जीने के लिए जो जरूरी है वो दवा नहीं हमारे पास
वो चला गया सब कुछ छोड़ कर
कैसे बताऊँ
मेरा दिल ले गया है वो अपने साथ-
है धुंध सा ये रास्ता, है धुंध सी ये रोशनी
चल पड़े है राह पर ढुंढ़ने अब बंदगी
ना जुग्नुओ सा यार है, ना होसलो की जिंदगी
ना हाथ मे मशाल है ना दरिया ना पानी
लिखने की ज़िद है अपने हक़ की ये कहानी
उठना है, लड़ना है, जीना है , अपने तौर की जवानी
है " इन कलाब" सा नारा, इतिहास है दोहरानि
ना रुकना ना झुकना हो चाहे पर्वत हिमानी
बुनना है खुद को याद रहे जो सबको जुबानी
चलता जा तु, चलता जा तु , ऐ मुसाफिर ये मंजिल की प्यास है बुझानी...
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बैरागी नहीं -मेरे बैर से ही मेरा राग है..
तेरी यादें ही मेरे अंधेरो की आग है...
किस्से, कहानियाँ, हुस्न ,जहाँ सबको तेरा इंतज़ार है...
सुना है तु चाँद है ¡
इस बैरागी को जमीं होकर भी तुझसे ही प्यार है...
टुटती ,सुलगती सिसकिया भरी आहों से..
मैंने पूछा है हाल तेरा हवाओ से फ़िज़ाओं से...
इश्क़ की मंजिल नहीँ राह होती है
तेरे होने से ही मेरे जीने की आस होती है
पूरी है आधी है ,मन का ठहरा हुआ सा पानी है
कुछ ऐसी मेरे जमीं से चाँद तक की कहानी है
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निः शब्द नहीं मूक हूँ मैं....
अंजान नहीं बस दूर हूँ मैं...
युध् रणभूमि मे नहीं अंतर्मन में है
शस्त्र का लेख नहीं, अब उल्लेख केवल कर्म से हैं
शंका है मन में , तराश रहीं हूँ स्वयं को
गिरना उठना, रुकना थकना तो तय है..
हस्ती थोड़ी मिटी मिटी सी है..
अर्थ इसका ये नहीं की मिट जाऊँ वो धूल हूँ मैं..
मंजिल दूर है परंतु अनंत नहीं...
मेरा हार जाना मेरा अंत नहीं...
मेरा हार जाना मेरा अंत नहीं..
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