इश्क़ हो जाये तो फिर नशा क्या कीजिये,
दिल के दर्द को शमशीरों से फ़ना कीजिये।।
उनसे मिलने की जब दिल में हसरत सी हो,
उनकी तस्वीर को ही गले से लगा लीजिये।।
माना तड़पने के शौकीन तुम नहीं ज़ालिम,
मगर कुछ एहसासों को तो दिल में पनाह दीजिये।।
चेहरे की रंगत फीकी सी लग रही है,
कभी बरसात की तरह भी दस्तक दिया कीजिये।।
दिल्लगी की तलब है तो कुछ और करीब आईये,
जो सिर्फ जाम की हसरत है, तो आंखों से ही बयां कीजिये।।
जो हम बेवफा हैं तो ज़ालिम बन कर सज़ा दीजिये,
गर इश्क़ तुमको भी है तो बस इक बार नज़रों से पिला दीजिये।।।
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