ऋतुराज बसंत के आवन की, जब आहट सुनी मनभावन ने।
नङ्गे पग दौड़ चली सजनी, ज्यों पंख लगाए हो पाँवन ने।।
भँवरा से गूँजें चितवन में, पट पीत ओढ़ के सुहागन ने।
धर गगरी सर इठलात चली, पनघट उमग्यो बड़भागन ने।।— % &-
If you like me plz give comments.
Writer & poet
Sr tea... read more
कुण्डली छंद
क़िस्मत को क्या दोष दें,
दोषी पितु अर मात।
ले बोरी कचरा चुनन,
भेज दिया परभात।।
भेज दिया परभात,
कि बचपन इनका खोया।
ख़्वाब बुने, काह चुने,
मुक़द्दर इनका सोया।
प्रजापति' को लेख,
भाग्य में ना कोई पुस्तक।
कागज़,कलम,दवात,
वाह रे!इनकी क़िस्मत।
-Cs प्रजापति— % &-
तेरे गांव में वो क़द्र न होगी तेरी
मेरे शहर का ज़र्रा-ज़र्रा है दिवाना मेरा...-
कुंडलियां
लाए धरकर शीश पर, संविधान जो लोग।
इसी वजह से आज हम,मौज रहे हैं भोग।।
मौज रहे हैं भोग, वो दुर्दिन दूर हुए हैं।
कोड़े,हंटर,लाठी के दिन धूर हुए हैं।।
प्रजापति'को लेख,जोदिन गर्दिश में बिताए।
आज़ादी के दीवाने, गणतंत्र है लाए।।
***^^***^^***^^***^^***^^***
शुभदिन है छब्बीस का, और जनवरी माह।
प्रहरी है गणतंत्र का,समता की जो राह।।
समता की जो राह,हमें देता आज़ादी।
देता शुभवरदान, पहनकर वर्दी खादी।।
प्रजापति'को लेख,बिताए जो दिन गिन-गिन
ख़ुशी हुए सब लोग मनाया जब ये शुभदिन।
-cs प्रजापति-
तू
आसमान में उड़े
ऊँचाई पर चढ़े
यही तो कामना है मेरी!
हर मंजिल मुसाफिर बने
चीरती जाओ कोहरे घने
हर ख्वाहिश पूरी हो तेरी!
रास्ते बियावान हों
चाहे! बिकट तूफान हों
छुंए न कोई बला ऐरी गैरी!
शक्ति बन बढ़ती जा
बुलन्दियों पर चढ़ती जा
आ रही है धूप सुनहरी!
-cs प्रजापति
-
बेटी होना खुशनसीब है
बेटी जनमी आप घर,
जनमे घर के भाग।
बेटा कांधे तौलिया तो,
बेटी सिर की पाग।।-
और...बढ़ जाएगा तुम्हारा कद
वाक़ई
शानदार हैं वो लोग
जो आपकी निन्दा करके आपकी नींद हराम करते हैं।
आपको चैन से न बैठने देते
आपकी कमी पर तैयार रहते हैं इधर की उधर लगाने
अगर आप उन्हें
उनके मन मुताबिक करने का अवसर देते हैं तो ये उनका नहीं दोष आपका है
सोच लो
वो तो अपने मन की करेंगे।
फिर
आप क्यों नहीं करते अपने मन की?
अगर करेंगे अपने मन की
तो वो मन मसोसकर रह जाएंगे-
धूमिल पड़ जाएंगी उनकी कोशिशें
पस्त हो जाएंगे उनके इरादे
ध्वस्त हो जाएंगी उनकी उम्मीदें
कलुषित हो जाएगा उनका चेहरा
और...
बढ़ जाएगा तुम्हारा कद।-
उसके आग़ोश में
एक विश्वास
एक निश्चिंतता
एक अचिंतनीय
सुकून उमड़ पड़ता है
जब आता हूं
उसके आग़ोश में।
एक आनन्द
एक स्वच्छंदता
एक अकल्पनीय
जुनून उमड़ आता है
जब आता हूं
उसके आग़ोश में।
हर सिरहन
हर उलझन
हर बन्धन
सा खुल जाता है
जब आता हूं
उसके आग़ोश में।
-
रचना ईश्वर की हो
या इंसान क़ी
दोनों में ही
भेदभाव किया गया है स्त्री के साथ
ईश्वर ने उसे एक स्त्री के रूप में रचा
तो इंसान ने उसे
एक अबला का रूप दिया
पुरूष प्रधान समाज में
एक स्त्री अपना वजूद
आज तक ढूंढ रही है
पुरूष बचते-बचाते
धीरे-धीरे एक-एक
च..र..ण..
-cs प्रजापति-
मनुष्य होकर
यह जीवन व्याधियों में ही
घिरा हुआ है...
अगले जनम में
धरती बनूँगा
दूसरों की व्याधियों
को ग्रहण करने का
यही सुअवसर रहेगा...
नहीं तो बनूँगा
आसमान, बरसाता रहूँगा
रहम की बारिश...
नहीं तो-
फिर
मनुष्य ही ठीक हूँ
कोसता रहूँगा अपने भाग्य को
क्योंकि
कर्म में मुझे विश्वास रहा ही नहीं...
जबकी गीता कहती है
कर्म कर...
-Cs प्रजापति
-