कभी परछाई तो कभी खुद से ही बात किया करती हूं कभी परछाई तो कभी खुद से ही बात किया करती हूं मैं अपने ख्यालों की दुनिया में ही जी लिया करती हूं सब पूछते हैं तुम ऐसा क्यों करती है तब उन सब से मैं सिर्फ तेरा ही जिक्र किया करती हूं
तू अगर समंदर है तो मैं किनारा बनना चाहती हूं तू अगर उजाला है तो मैं तेरे रोशनी से दिन बनना चाहती हूं तू अगर अंधेरा है तो मैं तुझे ओढ़ के रात बनना चाहती हूं तू अगर पानी है तो मैं मछली बनना चाहती हूं तू अगर चांद है तो मैं सितारा बनना चाहती हूं ज़िन्दगी के इस हसीन सफर में मैं तेरा हमसफ़र बनना चाहती हूं
घृणा कर उन सातो दिन घर की स्त्री को मंदिर में कामाख्या को पूजा जाता है सोच ज़रा वो सिर्फ खून नहीं सृष्टि का मूल आधार है फिर भी उसे दाग या धब्बा का नाम दिया जाता है यही लाल खून है जो पुरुष को भविष्य में पिता बनाता है फिर भी उसे अशुद्ध काहा जाता है हां ये यही खून है जिससे एक घर पूर्ण होता है फिर भी उसे अशुभ माना जाता है ये वही खून है जो जीवन का निर्माण करती है फिर भी इसे दाग या धब्बा का नाम दिया जाता है