Collabs King   (Spark Giri 'पत्थर')
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Joined 18 August 2023


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YESTERDAY AT 17:58

फ़ितरत से ही पत्थर है हम,
ग़र हो कोई इश्क़ का समंदर,
तो रखते हैं डूबने का हुनर हम,
जो छोड़ के जाते हैं,
उसके पीछे नहीं जाते हम,
और जो दिल में सबको ही
रखने का रखते हैं हुनर,
उसके दिल में फिर रह नहीं पाते हम.

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YESTERDAY AT 17:35

प्यार को भी ना करार आए,
जो प्यार को तुझ पर प्यार ना आए,
तु इतना प्यारा है हम दम के,
प्यार को भी तुझ पर प्यार आए..

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6 JUL AT 16:33

हम तो नशे में चूर रहते थे,
महबूब के आँखों में बसने से पहले,
इबादत से कोषों दूर रहते थे,
वो तो महबूब का रहमोकरम,
जो आँखों में बस कर,
बनाया उसे ख़ुदा का घर.

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6 JUL AT 16:16

अब समझ आई इन आँखों की मदहोशिया,
के मेरे महबूब का है ये आशियां.

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6 JUL AT 15:18

📺 दूर दर्शन 📺
वो दूर दर्शन का एक ज़माना था,
रहते थे दूर दूर पर बैठते थे पास पास,
कभी कभी दूर तक था जाना पड़ता,
किसी क़रीबी के दर्शन के
लिए दिल था तरसता,
तब हसीन बहाना था दूर दर्शन
और काम का भी,
बहुत सी बातें परोसता ज्ञान की भी,
आया करमचंद पहला डिटेक्टिव टीवी का,
जीत लिया उसने दिल सबका,
वो बुनियाद सीरियल ने रखी,
नीव पारिवारिक सीरियल की,
दिमाग में चल रहीं कहानिया
बिक्रम बैताल की आज भी,
शक्तिमान उस दौर में लुभाता बच्चों को सभी,

Read in Caption / Page 2 ➡️— % &जवान समाचार देखने के बहाने,
देख आते किसी के हाल,
वो उसकी लबों पे हसी वो उसके भीगे बाल,
जब तक ना देख ले रहते थे बेहाल,
बहाने वो चित्रहार के, आते थे वही दिल हार के,
हसीन थी वो रंगोली,
उसके बहाने से होती आँख में चोली,
वो रामायण की सीता भोली,
देख कर ही दिल में होती थी होली,
लगता था के हम है राम,
बिन सीता के दिल में होली के
साथ साथ मचा था कोहराम,
महाभारत देखने होती थी महाभारत खूब,
गली मोहल्ले हो जाते थे सुन्न,
वो भी था एक युग दूर दर्शन का,
रहते थे दूर दूर पर बैठते थे पास पास,
सबका आपस में था साथ कुछ खास,
मोबाइल है आज हर हाथ में,
पास होकर भी नहीं है कोई साथ में. — % &

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5 JUL AT 19:18

के आजकल हो गया है, अब्बा, डब्बा, चब्बा, ये ज़ज्बा,
ग़म और तन्हाइयों के घेरों ने कर लिया है उसपर जो क़ब्ज़ा.

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5 JUL AT 19:06

हर कोई यहा पर है माहिर,
मेरे साहिर..
कोई धोखा देने में,
तो कोई धोखा खाने में.

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5 JUL AT 18:48

तभी तो सच्चे लोग बेइज्जत फांसी पे चढ़ जाते हैं,
और जूठे बाइज्जत बरी हो जाते हैं.

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5 JUL AT 14:09

जान हथेली पे रखकर तो सब चलते हैं,
हम तो जान को
जानेमन बनाकर दिल में रखते हैं.

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5 JUL AT 13:58

जब दिल ही नहीं रहा हमारा,
तो धड़कन रखकर क्या करे,
वो नहीं हुआ हमारा तो क्या,
हम तो उसमे डूबकर ही रहे,
वो जो ठहरा समंदर,
और हम फ़ितरत से ही पत्थर.

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