बादल गरजेंगे डराने को,
बूँदे आएँगी भीगाने को |
आंधीयाँ आयेगी गिराने को,
तुम डटकर खड़े रहना |
यूँही मायुश ना होना,
चलते जाना मंज़िल पाने को ||-
झूठ से, डर से, धोखे से,
हर कोई डरता हैं |
फिर भी लूटने का,
फरेब करने का,
चोट पहुंचाने का ख़्वाब,
अपने दिल में रखता हैं |
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ये रास्ते ना जाने कँहा ले जायेंगे,
जितने कठिन होंगे,
उतने दूर तक ले जायेंगे,
इतना सोचकर चलते रहें तो
एक दिन मंज़िल तक जरूर पहुँच जायेंगे |-
मेरे दोस्त शादी के लिये,
लड़कियां ढूंढ रहे हैं,
और हम रिसर्च पेपर के लिये,
अच्छा सा जर्नल |-
हर तरफ शोर बहुत हैं,
फिर भी इंसान अकेला,
और बेज़ोर बहुत हैं |
दिखाता बहुत कुछ हैं,
पर हैं पास में कुछ नहीं,
ये दूसरे की नज़रो में हैं अच्छा,
पर खुद की नज़रों में चोर बहुत हैं |
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आज फिर गमले में पौधे लगाने वाले,
पर्यावरण की बात करेंगे,
उन्हें एक पेड़ लगाकर सेल्फी लेने का फिक्र होगा,
हर तरफ इनका जिक्र होगा |
फिर भी ना जाने क्यूँ लोग मौन होंगे,
बक्सवाहा के जंगलो को लेकर,
उनका ना कोई जिक्र होगा,
ना ही किसी को उनका फिक्र होगा |
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सरकार के आंकड़े,
एक उम्मीद से जगाते हैं |
पर दोस्तों के फ़ोन,
ज़मीनी हक़ीक़त से सामना कराते हैं |
सोचता हूँ थोड़ा कँही घूम के आ जाऊँ,
पर पैर घर की तरफ दौड़े चले जाते हैं |
इनको भी डर हैं कँही खो ना जाये,
इस कोरोना की भीड़ में |
इसलिए घर पर ही रहकर,
दोस्तों का हाल पूछने को कह जाते हैं |
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हर तरफ ऑक्सीजन की मारी हैं,
आज ऑक्सीजन सिलिंडरो की कालाबाज़ारी हैं |
भटक रहा हैं मनुष्य गली गली साँस लेने को,
ऑक्सीजन बिक चुकी, कर रही होशयारी हैं |
गाँव में बिना मास्क के सजी बारात सारी हैं,
हर तरफ हैं पेड़, ऑक्सीजन भी नाच रही,
सबसे की इसने यारी हैं |
शहर में हैं बहुत शोर हर तरफ महामारी हैं,
गाँव में भी हैं शोर दो रोटी के लिये कर रही तैयारी हैं |
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माना की मेरा घर पुराना था,
अब लगता हैं जैसे कोई गुज़रा जमाना था |
ना कोई खिड़की थी,
ना ही कोई दरवाजा था,
फिर भी धूप और छाँव
का आना जाना था |
ना कोई सुविधा थी,
ना ही कोई आराम,
फिर भी सकून था,
कँही तो अपना ठिकाना था |-
हवाएं आज नरम हैं,
लोगों का मिज़ाज़ आज गर्म हैं,
करते हैं छोटी-छोटी बातो पर सौदा,
पैसे से सबकी जेबे गर्म हैं |
ना कोई शर्म हैं,
ना ही कोई लहज़ा,
हर मुँह पे हैं गाली,
फिर भी ना कोई शर्म हैं |
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