चीख़ते ये मेरे बेज़ुबान लफ़्ज़   (Shah Asad Nafis*)
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Joined 18 October 2017


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बस एक मुलाकात की ख्वाहिश में मर गया मैं
कि लाश देखने आए भीड़ में शायद वो भी हों !

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धड़कनें गूँजती हैं सीने में
सोचो कितने सुनसान हो गए हैं हम !

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मुझे देखते ही चिल्ला उठे हकीम
‘कि लाशों की इलाज वो नही किया करते!’

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पहले खून के रिश्ते होते थे
अब रिश्तों के ख़ून होतें हैं !

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कुछ रातें जागता हूँ मैं
कुछ रातें जागतीं है मेरे अंदर !

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इंसान भी तो डँसता है
लफ़्ज़ों में ज़हर डालकर !🥀

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उदासियाँ बहतीं हैं मेरे नसों में
मैं साँस में तुम्हारी यादें खींचता हूँ!

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अब तो हालत यूँ हैं साहेब
मैं नही रोता..लोग मुझे देखकर रोतें हैं!

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मेरे सीने पे तुम ख़ंजर डाल देना
पहले दिल से ख़ुद को निकाल तो लो!

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ख़ाली ख़ाली सा उनका दिल शायद भर जाएगा
देखते देखते मेरे अंदर का उदास शख़्स मर जाएगा!

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