सिर्फ स्कूल नहीं है ये
मेरी यादों का पिटारा है,
वो वक्त लौट कर आया ना
जो मैंने यहां गुज़ारा है,
वो लड़ाई झगडे, वो मस्ती मज़ाक
एक अरसे से इंतजार में था मैं
चल फिर से यादें ताज़ा करे
न्योता मिला दोबारा है....
- वसुंधरा
(सत्र 2015)-
सबसे ज्यादा तकलीफ़ देती है अधूरी मोहब्बत...
अधूरी कहानियां हमेशा अपने आखिरी पन्ने की तालाश में रहतीं हैं...-
तुझसे मिलाया था मुझे किस्मत ने
और मजबूरीयों ने छीन लिया...
अब दर-बदर भटकता हूं साहिबा
दिल में काला रंग भर दिया...-
लोग चले जाते हैं दर्द-ए-दिल याद दिला कर
बस इसी वजह से मैं लोगों से परहेज़ करता हूं...
अपना-सा बनकर लोग मज़े लेते हैं साहिबा
अब मैं लोगों को अपनाने से डरता हूं...-
जिन गलियों से निकाला गया हूं
वहां लौट कर ना जाऊंगा....
थोड़ी देर रोऊंगा साहिबा
फिर खामोशी से सो जाऊंगा....-
हर बात दिल से लगाकर बैठ जाता हूं,
लोग बदल जाते हैं फिर मैं पछताता हूं,
बातों बातों में बात बढ़ जाती है
इसीलिए मैं ज्यादा बातें करने से कतराता हूं-
पूरा ठीक तो नहीं हूं मगर
पहले से ज़रा आराम है,
यूं ही मायूस ना हुआ कर साहिबा
थोड़ा-थोड़ा तो यहां हर शख्स बदनाम है,
हसीं शाम सी ढलती रहे
नई आशा दिल में पलती रहे
बस जैसी भी हो चलती रहे
ज़िन्दगी जीने का नाम है...-
समेटे बैठा था बरसों से मैं
आखि़र सीना चीर के दर्द-ए-दिल निकला,
तूफ़ानों को फ़तेह कर आया था मैं
पर धोखेबाज़ मेरा साहिल निकला,
कितना अनजान था मैं साहिबा
इन नक़ली से चेहरों से मोहब्बत करता रहा
जिसका ज़िक्र मैंने किया भरी महफ़िल में
आखि़र वही शख्स बादशाह-ए-महफ़िल निकला...
-
ख़ुद को खो दिया मैंने
उनको पाने के चक्कर में....
और वो कहते हैं साहिबा
तुम्हारे पास हमारे लिए वक्त नहीं है....-