जन्म कितने भी मिले हमें उसके हिस्से का जीवन जीना ही है सुख दुख मात्रा का भेद हो सकता है लेकिन उनका पूर्ण विलोपन संभव नही, वैसे ही अपने हिस्से के जख्म आपको खुद ही भरने है उनकी सार्वजनिक नुमाइश केवल हेय दृष्टि का पात्र बना देती है।
स्वयं से बेहतर प्रेरणा स्त्रोत कोई नही हो सकता । अगर आप आंतरिक रूप से प्रेरित नही तो कोई भी चार पंक्ति आपको सशक्त नही बना सकती प्रतीक चिन्ह हमें केवल रास्ता दिखा सकते है सफर हमें खुद ही तय करने होते है।
ज़िंदगी समर्पण जैसे तत्वों के अभ्यास में बीत रही है या द्वेष या ईर्ष्या जैसे दलदल में, अंधाधुंध अनुकरण में धस्ता हमारा विवेक। सबकी ज़िंदगी अद्वितीय है और अंत:करण की मौलिकता कभी मरती नही , उसको सबल कर हम कभी भी खुद का अद्यतन स्वरूप हासिल कर सकते है।
सबकी अपनी प्राथमिकताएं है। आप जब भी किसी भी रिश्ते में हो और आपको लगे यहीं है वो जो आपके अधूरेपन को पूरा करता है उसका वो हिस्सा। तो केवल उसकी प्राथमिकताएं जानें , समझे आत्मसात् करने का प्रयास करे, कभी भी प्राथमिकता होने की जद्दोहद में न रहे ।
विरासत के संवर्द्धक होना अगर तुम्हारे प्रराब्ध में नही तो उसके वाहक बनो , विरासत के धनी नही बने तो, धनी विरासत छोड़ कर जाओ । तुम्हे क्या मिला विरासत में सोचो? एक सोच सबको मिलती है, विरासत में! सही सोच मिली और तुम उसका पोषण कर पाएँ, तो तुम खुद एक विरासत हो।
बच्चे ईश्वर के वो प्रश्न है जो प्रत्येक सभ्यता से पूछे गए! उनके सवाल सीधे ईश्वर के ह्रदय के होते है,दर्शन के गर्भ से निकले प्रश्न जीवन को झकझोर ,सभ्यता को एक नई दिशा देते ,अगर हमने उनके सवाल ही सच्चे ह्रदय से ग्रहण किये होते तो विचारों की परिपक्वता एक नए आयाम पर होती।
प्रेम ऐसी खास भावना है, जो हमें खुद से मिलने का अवसर प्रदान करती है । जिनके भी हिस्से यह आया या छू कर निकला, उन्होंने इसकी शक्ति और शुचिता को काफी हद तक खुद के अंदर समाहित भी किया है।
जैसे दिन के बाद रात आती है मैने हार को उतनी सहजता से अपने जीवन में ग्रहण किया । केवल आपके पक्ष में चीजों का न होने को, अगर आप हार का नाम दे रहे है तो रुकिए, वास्तविक स्वरूप अंतिम परिणाम निश्चित करता है न की हार जीत।
बहुत से अनजानों से मिल अनजानी दुनिया छोटी लगने लगती है, और कुछ लोग कितने भी करीब हो हमेशा दूर ही रहते है .... वो केवल उनकी शिद्दत ही होगी कुछ अधूरी सी ..जो दो अनजानों को जोड़ती है हर रिश्ते और नाम से इतर.... निस्वार्थ प्रेम।