एक टकराने सी आवाज़ निकलती है
पर सुनाई नहीं देती,
एक दरार सी पड़ती है
पर दिखाई नहीं देती,
ऐसा लगता है मानो दिल टूटने ही वाला है, फिर से,
पर इंतज़ार की आदत इस कदर सी है
कि उसकी बेवफाई भी बुराई नहीं लगती।
प्यार है या ज़रूरत, फर्क करना तक मुश्किल सा है,
सेहेम सा जाता ज़रूर है ये दिल,
पर वो मरहम सा होता यूं कि शायद लड़ाई नहीं बढ़ती।
अक्सर एक मोड़ आता है जब आप रह भी नहीं पाते और निकलना भी नहीं चाहते, एक ऐसी आशिक़ी जिसमें अपनी शक्ल तक उसकी आखों में दिखाई देना बंद हो जाती है और हम हैं कि उसे प्यार बुलाते रह जाते हैं।
~ अंकिता
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