आंख्या रो आंख्या सूं हेत ,
इण लागै जियां सावण अर धोरां री रेत ।
मिनख जमारै रा होर मिनख नीं सुहावे,
भींत लागै खंडर बंजड़ लागै खेत।
@चित्रकला बागड़ी
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Book campiler(BACHPAN, HIN... read more
नैणा रा लोभी केऊं थाने, केऊं काळजे री कौर।
साथै -साथै चालजो, ओ म्हारे सिर माथै रा मोर।
बाट जोवै थारी जौड़ायत,मनड़े मांय उमड़यो घणघौर,
थांसूं म्हारो बोरलो, थे म्हारे काना री लोर।
@चित्रकला बागड़ी-
जब आंखे सिमट जाती है,
और होंठ खामोश हो जाते है,
तब तुम्हे दर्द नज़र आएगा,
कंपकंपाती, तड़फती,
बिलखती हाथों की उंगलियों में,
तो सोचना के कितनी
तकलीफ है जीने में।
जो पैर हजारों की भीड़ में नहीं डगमगाते ,
वो तुम्हारे सामने टिक नहीं पाएंगे,
तो महसूस करना के कितना
दर्द है मेरे सीने में।।
@चित्रकला बागड़ी
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जिंदगी में कुछ ऐसा चल रहा हैं,
चल नहीं, जल रहा है।
जलकर राख भी नहीं हो रहें,
कुछ ऐसे जल रहा है।
@चित्रकला बागड़ी
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लटपटाये पंखों में अभी जान भरने दो,
ये "जहाँ" कब किसका हुआ है ,
जरा खुद की उड़ान भरने दो,
नाम तो कई रिश्तों से मिल गया मुझे,
लेकिन कलम से अपनी पहचान भरने दो,
@चित्रकला बागड़ी
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हमने तुम्हारे इश्क का लिबास क्या पहना ,
इत्र की तरह महकने लगे।
@चित्रकला बागड़ी-
स्त्रीयां खुद चुन लेती है अपना श्रृंगार,
और गलत हमेशा पुरुषों को ठहराया जाता है।
@चित्रकला बागड़ी-
कुछ दर्द ऐसे होते है जो ,
ना DP में
ना STATUS
ना STORY
और ना ही आइने में नजर आते है,
वो लुप्त हो जाते है उन चेहरों में,
जिनकी मुस्कुराहट बेहद खूबसूरत ,
और आंखों का तेज़ बढ़ जाता है।
@चित्रकला बागड़ी-
मैं लडूंगी ...........
अपने सम्मान के लिए,
अभिमान के लिए,
अपने हक के लिए,
डटी रहूंगी अकेले ही।।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
@चित्रकला बागड़ी
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चढ़तो तावड़ियो,
ढलती छियां,
गांव रै भायला रौ आवणों-जावणों
घर रौ सुनोपन नीं मिटावै।
दरखतां सूंं भरयोड़ी बाखल,
खुंट्या माथै बंद्य़ा पसु ,
आंगणिये रौ खाली ढोलियो,
भोमका मांय दबयोड़ा मिनखा री याद दिलावै।
जीमंता बखत ,
जद सगला ताबै नीं आवै,
कीता ओखा होवै परोटणा?
मां रौ पिढो ओ बतावै।
सगला करै घणीं आपसरी रै मांय हथायां,
पण बढ़ेरा री कमीं नीं भरै,
तिंवार बणिया है रंग लगावणै,
दीया जलावणै, खुसी मनवाणै रै वास्तै,
पण म्हानै दीवारां माथै टंगया मिनख रुवावै।
@चित्रकला बागड़ी
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