क्या कहूं..........
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पता नहीं ये भंवरे किस के दम पे इतना उछलते हैं
मना करने पर ये फूलों जैसे चेहरों पर तेजाब उगलते हैं
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ना जाने रोज इश्क के नाम पे कितने जिस्मों के दंधे होते हैं
ये वादे तो सिर्फ जाल में फसाने के लिए फंदे होते हैं-
वो इश्क ही क्या जिसमे
जात पात की परख हो
दौलत शोहरत की परख हो
जमीन जायदाद की परख हो
रंग रूप की परख हो
अरे! इश्क तो वो है जिसमें सूरतों की नहीं सीरतों की परख हो-
जिस्मों को चाहने वालो कभी दिल से प्यार तो करके देखो
मालूम पड़ जाएगा कि इतना दर्द टूटे जिस्म का नहीं होता जितना टूटे दिल का होता है-
मालूम होता है कभी कभार कि कलमों का जैसे लफ्जों से साथ छूट रहा हो
क्या मालूम कि तेरे यादों का भंडार मुझ से कोई ओर लूट रहा हो-
अमीरों के दिलो में इश्क के लिए वफा की नमी नही होती
गरीबों के दिलों में इश्क के लिए वफा की कमी नहीं होती-
अमीरों के दिलो में इश्क के लिए वफा की नमी नही होती
गरीबों के दिलों में इश्क के लिए वफा की कमी नहीं होती-
इश्क भी क्या चीज है
कमबख्त अपने दर्द का ही बना लेता सब को मुरीद है-
मिलते नहीं लफ्ज़ अब लिखने को
दिल नहीं करता अब इस दुनिया की नजरों में खुद ही दिखने को-