क्यूँ के उसने दुबारा मुझे मुड़ कर नही देखा
इश्क़ ने किसी ख़्वाब में मेरे फिर उड़ कर नही देखा-
मेरी हस्ती ख़ुद-ब-ख़ुद चमक जाती है तेरा दीदार होने से
बस यही वज्ह है के रोक लेता हूँ मैं खुद को तैयार होने से-
जिन्हे मैं समझता हूं कि वो मुझे समझते हैं
मैं ये समझता हूं कि मैं गलत समझता हूं-
यक़ीनन हो, बावजूद इसके,
यक़ीन हो नही
जो वक्त में बांध दी जाए
वो मोहब्बत नही-
कभी ख़ुशामद में लगे
कभी ख़ुशी से अपनाने लगे
हम नादाँ उम्र भर
ज़िंदगी को ज़िंदगी बताने लगे-
शायद मेरे आने से, शायद मेरे जाने से
ना फ़र्क़ पड़ता है
लेकिन तेरे जाने के तेरे सारे बहाने से
मेरा डर भी डरता है-
बा-अदब पेश आना, सलीक़ा ये अपने घर से सीखा है
वर्ना चुग़ली और ग़द्दारी पर तैयार जवाब तीखा है-
तमाम रात उन के ख़्वाबों में बिता दी
सुब्ह ने होते ही मुझे हक़ीक़त दिखा दी
जो रेत पर लिख गया था मैं उन के लिए
ना जाने किन मौजों ने वो बातें मिटा दी-
किसी को लाने किसी बहाने, किसी को पाने के लिए
हम ने इश्क़ कर लिया खुद ही को सताने के लिए-