आप कभी जब हम से,
मिलने भी आ जाते हैं।
हम भी खुद को कहीं से,
जबरन बुला कर लाते हैं।
तुम मेरा हक हो ही नहीं,
इतना तो जान चुके हैं सो,
हम तेरे दयार से तन की,
गठरी उठा कर जाते हैं।
तुम लाख हमें समझाओ,
अभी समझना है ही नहीं।
आखिरी बाज़ी है बस फिर
सब कुछ गंवा कर आते हैं।
रात भी मुझसे उकता कर,
कहती है कोई लोरी सुना।
सब्र तो कर लो पहले हम,
खुद को सुला कर आते हैं।
रात है काली और लंबी भी,
यूं कटना काफ़ी मुश्किल है।
गीत,ग़ज़ल से रोशन है वो,
छगन को बुला कर लाते हैं।
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