छगन सिंह  
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Joined 10 April 2024


Joined 10 April 2024
28 APR AT 3:26

जब से गम ने घेरा है,
खामोशी का डेरा है।
फिर मौन बना महाशस्त्र...

एक अकेला क्या करता मैं,
डरता ना तो फिर मरता मैं।
फिर मौन बना महाशस्त्र...

मृत्यु भय जब मन पर छाया,
समर साहस मैं जुटा ना पाया।
फिर मौन बना महाशस्त्र...

कभी कहा तकदीर बना था,
बीत गया जो वक्त भला था।
फिर मौन बना महाशस्त्र...

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25 APR AT 1:00

चाहे तेरी याद के सिरहाने गुजर गए।
देखो, बिना तुम्हारे जमाने गुजर गए।

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14 APR AT 15:31

अंतिम सांसों में घुल कर,
गर एक घूंट भी मिल जाए,
सुना है सीधी जन्नत मिलती है।
मुझे इस हाल में छोड़ने वाले,
तुम्हें गंगाजल समझा था।

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14 APR AT 5:28

हर गली अनजानी
सारी सड़कें सूनी थी
उस पत्थरों के शहर में
हर मोड़ पर रोए हम

इतना तो याद है मुझको
मैंने हाथ नहीं छोड़ा
इससे आगे कुछ याद नहीं
किस मोड़ पर खोए हम

शोर सुनाई देने लगा था
मंजिल इतनी करीब थी
खरगोश से बैठे सोच रहे हैं
किस मोड़ पर सोए हम

एक ही सफ़र में कोई
दो बार नहीं लुट सकता
तुमको गंवा दिया तो फिर
बड़े बेखौफ से सोए हम

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12 APR AT 4:44

आप कभी जब हम से,
मिलने भी आ जाते हैं।
हम भी खुद को कहीं से,
जबरन बुला कर लाते हैं।

तुम मेरा हक हो ही नहीं,
इतना तो जान चुके हैं सो,
हम तेरे दयार से तन की,
गठरी उठा कर जाते हैं।

तुम लाख हमें समझाओ,
अभी समझना है ही नहीं।
आखिरी बाज़ी है बस फिर
सब कुछ गंवा कर आते हैं।

रात भी मुझसे उकता कर,
कहती है कोई लोरी सुना।
सब्र तो कर लो पहले हम,
खुद को सुला कर आते हैं।

रात है काली और लंबी भी,
यूं कटना काफ़ी मुश्किल है।
गीत,ग़ज़ल से रोशन है वो,
छगन को बुला कर लाते हैं।

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10 APR AT 17:49


मिलना अब श्रीराम कठिन है....

नफ़रत के इस दीर्घ दौर में,
अपनों की पहचान कठिन है।
हर मोड़ पर रावण बैठा है,
मिलना अब श्रीराम कठिन है।।

सह ना सकी नफ़रत की धूप,
फिर प्रेम की गंगा सूख गई।
वंशघाती बन बैठा भगीरथ,
सगर पुत्र उत्थान कठिन है।।

यमराज से स्वयं सावित्री,
सिंदूर का सौदा कर बैठी।
कलयुग के मृत सत्यवान को,
मिलना जीवनदान कठिन है।।

हर वाद यहाँ विवाद बना है,
तुक्कड़ भी कविराज बना है।
सच को लिखना छोड़ छगन,
मिलना अब सम्मान कठिन है।।

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