जो भी रिश्तें हैं सब शरीर से जुड़े हैं
रूह का सुकून किसी रिश्तें में मिला ही नहीं
इतना पाक कोई हुआ ही नहीं
सब उपर उपर के रिश्तें-नाते हैं
गहराइयों में उतरने का जज्बा कहीं पाया हीं नहीं
तो क्यों ना शुरुआत ख़ुद से कि जाए
जो भी हो अपना शत् प्रतिशत दिया जाए-
भाई-बहन के रिश्ते का नया रूप देखा हैं
आज फ़िर जीवन का नया पेहलु देखा हैं
अजनबी को यू अपना होते देखा हैं
रिश्तो का एक नया आयाम बनते देखा हैं
सोशल-मिडिया पर यू रिश्ता बनते देखा हैं
सच कहूँ तो कुछ हदो को मिटता देख
दिल को सुकून सा मिला हैं
और इन्ही सब के बीच अपने कुछ
सवालों के जवाब भी मिले हैं
जो शब्दों से परे हैं-
घर बनता है घर वालों से
ना की घर की चार दीवारी से
होने को चाहे घर छोटा हो
पर रहने वाले लोगों के दिल बड़े हो
चाहे हो घर की दिवारे टूटी फूटी
पर रहने वाले लोग जुड़े होने चाहिए
चाहे हो घर में धूल मिट्टी
पर रहने वाले लोगों के दिल साफ चाहिए
मांजरा बस इतना सा है कि
बिन लोगों का घर मकान होता है-
जी तो हम सभी रहे हैं
पर जीने का सलीका होना चाहिए
जो हो उससे कुछ बेहतर बनने की कोशिश होनी चाहिए
उसी कोशिश में जीवन को सही दशा और दिशा देने का काम करता है एक गुरु
गुरु जो आपका मार्गदर्शन करें
जो आपको जीवन जीने का सलीका सिखाएं
जो आपको आपके प्रश्नों के जवाब न देकर उनके जवाब खोजने को कहें
कहे हुए को ना मानकर खुद जानने की कोशिश करने को प्रोत्साहित करें
है बहुत से गुरु मेरी नजरों में
कुछ मां बाप भाई दोस्त के रुप में
तो कुछ यूट्यूब गुरु के रूप में
तो कुछ है इंस्टा गुरु के रूप में
डिजिटल जमाना है गुरु भी डिजिटल है-
हर प्यार की हैप्पी एंडिंग शादी पर हो ये जरूरी तो नहीं
पर जो हम समझते हैं वो दुनिया शायद समझेंगी नहीं
उसके लिए मेरी जो feeling हैं वो सिर्फ उसी के लिए हैं
ये जो आज की मेरी life और सोच हैं सब उसी की तो देन हैं
ना इससे पहले ना ही इसके बाद कोई इतना खास हुआ हैं
उसका नाम सुनते ही जाने क्यों मेरा हाव-भाव बदल जाता हैं
उसे ये सब अभी बताने की हिम्मत नहीं हैं
शायद कभी किसी मोड़ पर उसे खबर हो जाए
प्यार का असली मतलब उसी से सिखा है
जहाँ कोई मतलब ना हो वही प्यार हैं ये भी उसी से समझा हैं
हर वो पल जब जब उसे करीब से देखा हैं
वो एक तस्वीर सा मेरे दिल पर छपा हैं
जाने क्यूँ आज उसे सोच कर आँखों से झरना बह रहा हैं-
छोड़ देना कोई बुरा नहीं
भूल जाना कोई बुरा नहीं
खुद को भूल जाओगे
तो शायद खुद ही को जान जाओगे
जानते ही कितना है हम खुद को
मानते वही हैं जो ज़माने ने हमें बना रखा है
उससे आगे खुद को जान ही कहां पाते हैं
तो भूल जाओ खुद को और जान जाओ खुद को
खुद ही को खो कर खुद ही को पाने की इक कोशिश कर लो
जीवन को नए ढंग से जीने की इक चेष्ठा कर लो-
मैं मुझ ही में कही कैद हूं
गैरो से क्या अब शिकवा करूँ
बीते लम्हों में खुद को ढूँढू
या फिर कही गुमनाम हूँ
सोचा ना था कभी ऐसा होगा
उनसे मिलकर यू बिछड़ना होगा
राहों में कोई यू अपना होगा
फिर अपने से यू अजनबी होगा-
लिखते लिखते अक्सर खो जाती हु
ख़ुद इक नयी दुनिया मे पहुंच जाती हू
फ़िर ज़रा बहक जाती हू
अपने खयालो मे कुछ यू लिख जाया करती हू
कभी भविष्य को पहले ही लिख जाया करती हू
शब्द अक्सर कम पड़ते हैं भावो के लिए
पर फ़िर भी कुछ बाते तो लिख लिया करती हू
कलम से अपनी दोस्ती निभाया करती हू
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दुनिया एक रंगमंच और, रंगमंच के हैं हम किरदार
अंदर कुछ और बाहर कुछ और, निभाते हैं दोहरा किरदार
एक सर्कस सी जिंदगी और, हम हैं एक अदाकार
लोग और लोगों के जज़्बातों का, होता हैं यहाँ व्यापार
महफ़िलो में बनावटी मुस्कान, तन्हाई में होते गुमनाम
ठोकरे खा-खाकर ही बारंबार, यहाँ होते हैं सपने साकार
इस पूरे अभिनय के निदेशक भी हम और आलोचक भी
तभी तो जिंदगी हैं कहलाती, कहानी अनेक अध्यायों की-