बीच चौराहे बेइज्जत हुआ क्या मेरा आत्मसम्मान नही था पलट के देता उत्तर मैं भी पर दोनो के लिए कानून सामान नहीं था वो मारती गई, मैं सहता गया क्या गलती है मेरी दीदी ये मैं कहता गया वो क्रोध की आग में झुलस रही थी नारी शक्ति का सहारा लेकर मचल रही थी अगर कानून दोनो के लिए एक जैसा होता फिर बताती तुझे आत्मसम्मान खोना कैसा होता