इस हंसते चेहरे के पीछे सौ दर्द छुपे तुम क्या जानो,
इन मस्ती करती बातों में जो रंज छुपे तुम क्या जानो।
तुम क्या जानो के पल भर में क्या खोया हमने क्या पाया,
कुछ साथ चले न चंद क़दम, कुछ साथ चले तुम क्या जानो।।
हम तक़लीफों के आंगन में सदियों तक सोये सोये रहे,
और उम्मीदों के दामन में बरसों तक खोये खोये रहे।
जब साथ रहे हम बचपन के कब दिन गुज़रे मालूम नहीं,
जो जवां हुए तो लम्बे दिन काटे हमने तुम क्या जानो।।
जब बातों ही बातों में हमने हाल-ए-दिल उनका जाना,
वो बोले मुमकिन ही न था तन्हा रातों को सो पाना।
हर करवट की हर सिलवट पे, हर जुगनू की हर जगमग पे,
कैसे गुज़री वो स्याह रात तुम क्या जानो, तुम क्या जानो।।
पढ़कर तुमको जो रात गुज़ारी, नींदें आंखों से हुई ओझल सारी,
जो तुमने सहा हर दर्द जिया, पर रहने दो, तुम क्या जानो।
जब रोई तुम एक दर्द जगा, हर ग़म तेरा अपना सा लगा,
ग़र चाहो तो तुम ना मानो, पर ये न कहो, "तुम क्या जानो"।।
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