Chetan Mishra   (FuNKaaR)
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TrUe ArTiSt_DiL Se
Joined 6 April 2020


TrUe ArTiSt_DiL Se
Joined 6 April 2020
4 AUG 2022 AT 9:50

ग़र संभाल न सको तिरंगा तुम तो छत से इसे हटा लेना,

पर पड़ा मिले जो कहीं सड़क पे तो झुककर उसे उठा लेना।

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3 AUG 2022 AT 14:59

हर राह, गली और हर घर में तुम आज तिरंगा लगा लेना,

अपमान न हो पर तिरंगे का ये बात मगज में बिठा लेना।

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3 JUL 2020 AT 10:12

जो मिले ख़ुदा तो पूछ लूं,
हर इक पहेली बूझ लूँ.!
जो हो रहा, क्यों हो रहा,
कब तक चलेगा ये बता.?

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19 JUN 2020 AT 21:23



तो बात कुछ ऐसी है, वो बिल्कुल मेरे जैसी है।
आंखों में शर्म और लबों पे उसके हंसी है।।

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3 JUN 2020 AT 0:03

इक चाय की चुस्की पे जो सफ़र शुरू होता है,
ग़र बात ना बनी तो ना सही, ऐसे भला कौन रोता है।

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28 MAY 2020 AT 0:01

क्या लिखूं मैं तुझपे, जो लिखूं वो कम लगे,
तू नहीं ग़र साथ में, तो ख़ुशी भी ग़म लगे।

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24 MAY 2020 AT 15:31

इस हंसते चेहरे के पीछे सौ दर्द छुपे तुम क्या जानो,
इन मस्ती करती बातों में जो रंज छुपे तुम क्या जानो।
तुम क्या जानो के पल भर में क्या खोया हमने क्या पाया,
कुछ साथ चले न चंद क़दम, कुछ साथ चले तुम क्या जानो।।

हम तक़लीफों के आंगन में सदियों तक सोये सोये रहे,
और उम्मीदों के दामन में बरसों तक खोये खोये रहे।
जब साथ रहे हम बचपन के कब दिन गुज़रे मालूम नहीं,
जो जवां हुए तो लम्बे दिन काटे हमने तुम क्या जानो।।

जब बातों ही बातों में हमने हाल-ए-दिल उनका जाना,
वो बोले मुमकिन ही न था तन्हा रातों को सो पाना।
हर करवट की हर सिलवट पे, हर जुगनू की हर जगमग पे,
कैसे गुज़री वो स्याह रात तुम क्या जानो, तुम क्या जानो।।

पढ़कर तुमको जो रात गुज़ारी, नींदें आंखों से हुई ओझल सारी,
जो तुमने सहा हर दर्द जिया, पर रहने दो, तुम क्या जानो।
जब रोई तुम एक दर्द जगा, हर ग़म तेरा अपना सा लगा,
ग़र चाहो तो तुम ना मानो, पर ये न कहो, "तुम क्या जानो"।।




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7 MAY 2020 AT 19:06

वो ज्योत भी है मशाल भी।
बारूद भी है गुलाल भी।।
कोई छेड़े तो उसे छोड़े ना।
कर देती है बुरा हाल भी।।

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28 APR 2020 AT 18:58

जब बातों ही बातों में हमने हाल-ए-दिल उनका जाना,
वो बोले मुमकिन ही न था तन्हा रातों को सो पाना।
हर करवट की हर सिलवट पे, हर जुगनू की हर जगमग पे,
कैसे गुज़री वो स्याह रात तुम क्या जानो, तुम क्या जानो।।

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28 APR 2020 AT 0:40

हम तक़लीफों के आंगन में सदियों तक सोये सोये रहे,
और उम्मीदों के दामन में बरसों तक खोये खोये रहे।
जब साथ रहे हम बचपन के कब दिन गुज़रे मालूम नहीं,
जो जवां हुए तो लम्बे दिन काटे हमने तुम क्या जानो।।

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