कहां रास आई मोहब्बत मतलब के ज़माने में
मैं फ़ूलों का कत्ल कर आया,पत्थर को मनाने में।-
👉Cᴏ-ᴏʀᴅɪɴᴇᴛɪᴏʀ–भारतीय युवा जागृति मंच🇮🇳
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कुछ तो दागदार होगा किरदार उसका जो आईने के सामने आने से कतरा रहा है,
सच तो लिखा है उस कोरे काग़ज़ पर और वो लेकर कलम उसे मिटा रहा है।
चेतन घणावत स.मा.
साखी साहित्यिक मंच, राजस्थान-
जी हां! लड़के भी पराये होते हैं!!
किसने कहा लड़के पराये नहीं होते
अपनों के सपनों के ख़ातिर,
कुछ सपनों के अपनों के ख़ातिर
रातें सो जाती है, तब कहीं जाके ये सोते हैं
जी हां! लड़के भी पराये होते हैं!!
करते हैं बातें एक छोटे कमरे की चारदीवारी से
आज नहीं तो कल जीत जाऊँगा
अपनों की नजरों में सम्मान लाऊंगा
ये नित नया संकल्प मन में बोते है
जी हां! लड़के भी पराये होते हैं!!
रो लेती है लड़किया हर छोटी बातों पर
पर लड़के सोख लेते है आंसू
कोई उन्हें कायर न कह दें,
पर पूछना स्याह रातों से
लड़के भी सिसक सिसक कर यादों मे रोते हैं
जी हां! लड़के भी पराये होते हैं!!
ये कैसा रिवाज़ बना दिया है समाज ने
घर का नाम करने के ख़ातिर इन्हें घर से दूर कर दिया
जिम्मेदारियों ने देखों तो मजबूर कर दिया
कुछ पाकर के, बहुत कुछ खोते हैं,
जी हां! लड़के भी पराये होते हैं!!
चेतन घणावत स.मा.
साखी साहित्यिक मंच, राजस्थान-
मोहब्बत के तोहफ़े में मिले गुलाब के फूल
अक्सर किताबों में दम तोड़ दिया करते हैं
चेतन घणावत स.मा.-
समझ आता सफ़र मेरा तुमको भी,
इक बार उस राह से गुजर कर तो देखा होता।-
उन्हें मालूम क्या कोई, केसे यह झेल पाता है,
जब दिल में बसने वाला दिल से खेल जाता है।-
बस कहने मात्र को ही तो धरती, आसमान से नीचे है,
कांधे से कंधा मिलाकर कर चलती है आज लड़की कहां लड़कों से पीछे है।
चेतन घणावत स.मा.-
क्या था दरमियाँ हमारे, करीब आकर महसूस किया है
चाँदनी हो गई जिंदगी मेरी, मैं चांद को जो बाहों में लिया है।-
मेहनत की चिंगारी से आग लगाते हैं
चलो
मार कर पानी आँखों में सोये भाग जगाते है।-
यों टूट कर बिखर गया
पंखुड़ियों में,और उन
बिखरी पंखुड़ियों का यों
पैरों में नीचे आकर
टूटना
कितना असहनीय
दर्द देता है
लोग मतलबी होते हैं यहां
वो अपने मतलब के लिए
गुलाब को अपनों से
दूर कर के
फेंक देते हैं, यों ही
पैरों तले
टूट कर बिखरने को
क्या यही एक गुलाब की नियति है-