बचपन में जो दुनिया मुझे दिखाई गई थी, और जो दुनिया मैं देखता हूं। दो अलग दुनिया है।
मुझे बताया गया था कि तरकारी खरीदते वक्त सतर्क रहो। तुम्हारे पलक झपकते ही , सामने वाला तुम्हें हिसाब में उलझा कर, तीस रुपए का फायदा कर ही लेगा। पर मैं जब भी पैसे देने लगता तो उसी 'सामने वाले' की कटी उंगलियां दिख जाती। छितराए नाखून दिख जाते। और कहीं से झूमती मटकती गरीबी , आ हथेली पर बैठ जाती। मुझे अंगूठा दिखाती। अब फटी चमड़ी पर जब मेरी नजर जाती तो ठहर जाती।
और उसके बाद कितने पैसे मुझे लेने या देने थे, मेरे सारी गिनती जाती रहती ।। ।।
( मिली थी जिंदगी किसी के काम आने के लिए, पर वक्त बीत रहा है कागज के टुकड़े कमाने के लिए ) ....?
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