भरोसा करके एक बार फिर पछता रही हूँ मैं.....
जैसे फूल खिलते, फिर से मुरझाई जा रही हूँ मैं।
मौसम बदलते हैं दिल के अरमान भी,
जैसे रेत में लिखे, साहिल से बह रही हूँ मैं।
दिल की गहराईयाँ समुंदर से भी गहरी हैं,
जैसे अंधेरी रात में सितारे खोज रही हूँ मैं।
तुम्हारी यादों का सहारा है मेरे दिल को,
जैसे सागर को किनारा, मैं तुम्हें ढूंढ़ रही हूँ मैं।
भरोसा करके एक बार फिर पछता रही हूँ मैं,
मगर आशा है कि मिलेंगे फिर से, यकीन दिला रही हूँ मैं।
-