હું અહર્નિશ કૈંક ઝંખું છું સરસને,
જળનું સરનામું મળે તારી તરસને;
આ નહીં તો આવતા જન્મે મળીશું,
વીતતાં ક્યાં વાર લાગે છે વરસને?
- ડૉ. દિલીપ મોદી-
मैं नज़र से पी रहा हूँ ये समाँ बदल न जाए
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाए
मिरे अश्क भी हैं इस में ये शराब उबल न जाए
मिरा जाम छूने वाले तिरा हाथ जल न जाए
अभी रात कुछ है बाक़ी न उठा नक़ाब साक़ी
तिरा रिंद गिरते गिरते कहीं फिर सँभल न जाए
मिरी ज़िंदगी के मालिक मिरे दिल पे हाथ रखना
तिरे आने की ख़ुशी में मिरा दम निकल न जाए
मुझे फूँकने से पहले मिरा दिल निकाल लेना
ये किसी की है अमानत मिरे साथ जल न जाए
- अनवर मिर्ज़ापुरी
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अमीरे-शहर कहता है जमाना मुझसे चलता है।
पर उसकी बात को सुनकर फ़किरे-दस्त हंसता है।
अजब काजल मेरी आंखो में तूने ये लगा डाला,
कोई चेहरा है कैसा भी मुझे सुंदर ही लगता है।
- राज कौशिक
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चामुंडा...
अकवकित गन असुर , चकित थर थरत चरा चर ,
थंभ भूमि भय थकित , लोल जल शायर लरथर ,
वात करत नह वहन , जंप गये सकल तटनि जल ,
विबुध वृंद भय विकल , मेरुगिरि भये सु खल भल ,
ब्रह्मांड अंड हलबल विपुल , झुंड , झुंड नर फेलि जर ,
चामुंड रकत भय मुंड शर , करन खंड असि तोलि कर
- काग बापु-
शबभर रहा ख्याल में तकिया फ़कीर का ।
दिन भर सुनाऊंगा तुझे किस्सा फ़कीर का।
हिलने लगे हैं तख्त उछलने लगे हैं ताज,
शाहों ने जब सुना कोई क़िस्सा फ़कीर का।
विजेन्द्र परवाज़
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वो जो मेरे करीब से हंसकर गुजर गए।
कुछ खास दोइस्तों के चेहरे भी उतर गए!
-राजेश रेड्डी-
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया
हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को
क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया
किस लिए जीते हैं हम किस के लिए जीते हैं
बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया
कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया
साहिर लुधियानवी-
ज़िंदगी ज़िंदा-दिली का है नाम
मुर्दा-दिल ख़ाक जिया करते हैं
- इमाम बख़्श बासिख़-
न वो इक़रार करता है न वो इंकार करता है
हमें फिर भी गुमाँ है वो हमीं से प्यार करता है
- हसन रिज़वी-
अच्छा ख़ासा बैठे बैठे गुम हो जाता हूँ
अब मैं अक्सर मैं नहीं रहता तुम हो जाता हूँ
अनवर शऊर
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