धर्म-अधर्म की बाते तो सब सरेआम बेधड़क करते है मगर धर्म के उसूल पर चलता कोई नहीं,
धर्म के लिए कोई कुछ कह दे तो खून में उबाल को उतावले है मगर सच की तहकीकात करता कोई नहीं,
सब अपनी आज़ादी की बात करते है, मगर कपस में बंद बेजुबां की आज़ादी की बात करता कोई नहीं,
अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ बताने से चुकता कोई नहीं मगर सच है कि कलंकित होने से कोई धर्म बचा नहीं ।
✍️चंद्र शेखर-
कुछ लोग होते जिनका लिखने का शोक होता है ... read more
कुछ तो बात है उनकी बातों और परवाह करने के अंदाज़ में,
जो छोड़ दिये मेने अपने सारे नशे सिर्फ उनकी एक बात में ।-
अब देखा नहीं जाता अपना बना अपनो का मुझसे दूर हो जाना,
चाह है तो बस यहीं कि 'अपनो का साथ आंखिरी सांस तक आना'।-
तुम्हें ख़ुश देखना चाहूँ तब तो भी तुम ख़ुश रहना पसंद नहीं करती,
तुमसे बात करने की चाह है बहुत दिनों से पर तुम बात भी नहीं करती,
हुईं हो कोई ख़ता मुझसे तो बता दो, तुम्हारी चुप्पी भी कुछ नहीं कहती,
लगता है तुम्हारे उसूल अलग है जैसे तुम गुनहगार को माफ नहीं करती।-
तुझको सौंप दिया तेरा वक़्त मैने,
चाह करीब आने की थी पर दूर किया तूने,
शायद तुझे मुझसे बेहतर मिलने की उम्मीद थी,
तेरी खुशी खातिर तुझे आजीवन रक़ीब को सौंप दिया मैंने।
-
नौकरी छोड़ दी मैने तो साथ जो थे, साथ छोड़ दिया उन्होंने,
जब जेब खाली होने लगी मेरी, तो खाली हाथ दिखाये उन्होंने।
मुझसे पूछ लिया सब,उनकी बारी नींद का बहाना बनाया उन्होंने,
सच जानना चाह,तो सच से अनजान दिखाना पसंद किया उन्होंने।
दिया वक़्त उन्हें तो बर्बाद ना समझा मैने, सबक लिया उससे मैने,
किया वक़्त निवेश उनपर बिना सोचे, तो खामियाजा भुगता रहा मैं।
कल अगर सांसे थम भी जायेगी मेरी तो भी कोई गम नहीं मुझे,
राह में रोडे से बने वो, मगर ठोकर खाकर भी जीना सीखा हूँ मैं।
खाली हाथ जरूर आया हूँ मैं, मगर खाली हाथ तो नहीं जाऊँगा मै,
यादों की कीमत शून्य ही क्यों ना हो, तुम्हे भी शून्य कर जाऊंगा मैं।
@दर्दekसज़ा-
वह शक्श जो स्वयं को स्पष्वादी कहा करते है,
मुँह पे मेरी तारीफ और पीछे से पागल कहते है,
तुम कोई जाकर कह क्यों नहीं देता उनसे,
पागल हूँ फिर भी प्यार करते हो तुम मुझसे।-
वह जो कभी अजीज़ माना करते थे हमे, आज आम किये बैठे है,
उन्हें ज़रा भी ख़बर नहीं हम आज भी उनको अजीज़ ही मानते हैं।
बेख़बर है वो पर आज भी हम उनकी ख़ामोशी पढ़ लिया करते है,
मगर बदल गये है वो,मेरे हाल पूछने पर सच छुपा लिया करते है ।-
उसकी नज़र से नज़र मिली तो पलके झुकने से इनकार कर गयी,
पता नहीं क्या नशा था उसकी आँखों मे की नज़रो का चश्मा दे गयी।-
जिंदगी की सबसे अहम पड़ाव के लिए झूझ रहा हूँ मगर वो मानने को तैयार नहीं,
जी हाँ, अपनी ज़िंदगी से खुद के जिंदा रहने की गुहार कर रहा हूँ, वो इस बात को मानने को तैयार नहीं,
और यूँ तो हर छोटे मोटे दर्द सहने की आदत है मुझे, क्योंकि हर दर्द बांटने की मुझमे शक्ति नहीं,
फिर दर्द छुपाने को हरपल हँसते रहता हूँ और फिर उसका तो बस कहना होता है कि तुम्हे तो कोई दर्द नहीं।
अगर मेरे जीते-जी मुझपर भरोसा ना दिखा सकते तो मेरे मरने के बाद आँसू बहाने से फायदा क्या ?
जब जरूरत के वक़्त काम ना आ सको तुम, तो मेरी मौत पे शौक मनाने आने का फायदा ही क्या?
आज जब ज़िंदा हूँ तो अपने अहम लोगो की सुंची में मेरी फ़ोटो को शामिल किया ही नहीं,
कल जब ये दुनिया छोड़ के चला जाऊंगा तो मेरी तस्वीर लगा कर *R.I.P. will miss you* लिखोगे उसका फायदा ही क्या ?-