खुशियों की शहनाई है मंगल बेला आई है
वर्षों से जिसकी थी प्रतीक्षा वो घड़ी अब आई है
नए रंग से सजी जिंदगी आंखों में नर्माई है
मां के संघर्षों की कठिन तपस्या अब पूरी होने आई है
हृदय भरे उल्लासों से घर में गीत बहार है
मिलने की अपनों से आंखों में नई बयार है
अपने शिव(गुंजन) से मिलने को गौरी भी तैयार है
एक दूसरे का हिस्सा बनने को शामिल दो परिवार है
नए सवेरे के सूरज के संग ही ये नूतन संध्या आई है
अपने घर में बसने को बसंत बहारें आई है
नए रंगों से सजी जिंदगी आंखों में नर्माई है
मां के संघर्षों की कठिन तपस्या अब पूरी होने आई है
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कुछ लिख कर वक़्त... read more
सितारों ने तय की थी जो कहानी
उन किरदारों के मिलने का समय हो गया है
गीत गाओ दिशाओं और घर मेरे आओ
दो परिवारों के मिलने का समय हो गया है
फूल मालिन के बगिया से टूट के
आज मंदिर में चढ़ने को बढ़ चला है
दो आशीष देवताओं और घर मेरे आओ
दो परिवारों के मिलने का समय हो गया है
मां भवानी आज पूरी कर रही है मनौती
सारी नदियों और सागरों से है विनती
अपना जल मंगल कलश में लेके आओ
दो परिवारों के मिलने का समय हो गया है
मां ने मेरी की थी तपस्या जो कई साल से
उस तपस्या का मिलने को फल आ गया है
सारा ब्रह्मांड उमड़ा है आज दिल में
दो परिवारों के मिलने का समय हो गया है
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If you expect 150-hour work weeks, then make employees partners, not just workers. I’d happily work that much if it were for my own business, where I don’t face the threat of being laid off or treated unfairly.
Stop comparing India to China, where the government hides realities. Look at Europe and the USA, where people actually live fulfilling lives. Otherwise, consider switching to a business like donkey farming, as even they don’t work as hard as you expect employees to.-
Saying such things without action is meaningless. Everyone knows you’re just supporting corrupt leaders. Unlike Tata, Mahindra, Maruti, or Reliance,CYIENT you have no history of genuine struggle. Your success is more like a reality show, staged and superficial.
If you want to know how employees are exploited, experience life as one yourself. Visit the canteen, eat the food, and see the conditions employees endure. Just because you worked hard for your business in the past doesn’t mean employees should do the same. Business owners work 24/7 because it’s their dream and investment. Employees are not obligated to do the same.
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Why assume that Indian families only revolve around wives? What about parents, children, pets, nature, and human responsibilities? If you want to push such ideas, first ensure your own family members don’t live a luxurious life, staying out late or enjoying privileges employees can’t. Make them work long hours, use public transport, and struggle like ordinary employees to understand what they go through.
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At the end of life, one should leave a legacy that makes people cry with love and respect, not become a subject of memes. Take inspiration from legends like Ratan Tata, who will make the world mourn deeply when they leave, instead of being ridiculed.
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आपको समझना चाहिए कि बिजनेस का असली उद्देश्य सिर्फ पैसा कमाना नहीं, बल्कि एक ऐसा वातावरण बनाना है, जहाँ सभी मिलकर विकास करें। यदि कर्मचारियों का शोषण करना ही आपकी रणनीति है, तो यह व्यापारिक दृष्टिकोण लंबे समय तक टिक नहीं सकता। कर्मचारी केवल आपकी मशीन नहीं हैं, वे आपकी कंपनी की आत्मा हैं। उनकी मेहनत और संघर्ष को पहचानें।
कर्मचारियों को भी इंसान समझें, और उनकी जरूरतों को प्राथमिकता दें। क्योंकि एक खुशहाल और संतुलित कर्मचारी ही किसी कंपनी को असली सफलता की ऊँचाइयों तक ले जा सकता है।
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अगर आप 150 घंटे प्रति हफ्ते काम करवाना चाहते हैं, तो कर्मचारियों को पार्टनर बनाइए, सिर्फ कर्मचारी नहीं। मैं खुद इतनी मेहनत करने को तैयार हूं, लेकिन अपने बिजनेस के लिए, जहाँ मुझे छंटनी या अन्याय का डर न हो।
भारत की तुलना चीन से करना बंद करें, जहाँ सरकार सच्चाई छुपाती है। चीन की कंपनियाँ अपने कर्मचारियों को मशीन की तरह ट्रीट करती हैं। अगर तुलना करनी है, तो यूरोप और अमेरिका की ओर देखिए, जहाँ लोग सच में खुशहाल जिंदगी जीते हैं। वहाँ काम और जीवन के बीच संतुलन बनाए रखने को प्राथमिकता दी जाती है। वरना, ऐसा व्यवसाय छोड़कर गधों का व्यवसाय शुरू कर दीजिए, क्योंकि वे भी इतना काम नहीं करते जितना आप कर्मचारियों से करवाना चाहते हैं।
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ऐसी बातें कहना और कुछ न करना बेकार है। हर कोई जानता है कि आप भ्रष्ट नेताओं के केवल समर्थक हैं। टाटा, महिंद्रा, सायंट,मारुति या रिलायंस जैसी कंपनियों ने सच्चा संघर्ष किया है। आपकी सफलता एक रियलिटी शो जैसी लगती है, जो सिर्फ दिखावा है। अगर आपके पास संघर्ष की सच्ची कहानी नहीं है, तो दूसरों को उपदेश देना बंद कीजिए।
अगर आप जानना चाहते हैं कि कर्मचारी कैसे संघर्ष करते हैं, तो खुद एक कर्मचारी की तरह काम करके देखिए। ऑफिस की भीड़, ट्रैफिक, कैंटीन का खराब खाना, बॉस का दबाव, और न खत्म होने वाले काम का बोझ, यही एक कर्मचारी की जिंदगी है। आपने अपने बिजनेस के लिए मेहनत की होगी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कर्मचारी भी वही करें। बिजनेस मालिक 24/7 इसलिए काम करते हैं क्योंकि वह उनका सपना और निवेश है। कर्मचारियों पर यह थोपना सही नहीं है।
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आप इंफोसिस जैसी कंपनी की बात करते हैं, लेकिन वहाँ के कर्मचारियों को क्या मिलता है? एक बार खुद जाकर कैंटीन में खाना खाकर देखिए। वहाँ का खाना इतना खराब होता है कि कोई भी इसे खाना नहीं चाहेगा। यह खाना केवल नाम का है, स्वाद, गुणवत्ता और पोषण में ज़ीरो। ऐसे में कर्मचारियों से उम्मीद की जाती है कि वे अपनी पूरी ऊर्जा काम में लगाएंगे? ऑफिस का वातावरण और बुनियादी सुविधाएँ ऐसी होनी चाहिए कि कर्मचारी अपने काम से जुड़ाव महसूस करें, लेकिन इसके विपरीत, वे सिर्फ शोषण का शिकार बनते हैं।
इतना ही नहीं, ऑफिस का काम ऐसा बनाया गया है कि कर्मचारियों को अपने परिवार के लिए समय नहीं मिलता। क्या जीवन केवल काम के लिए है? क्या इंसान का जीवन परिवार, शौक, और अपनी सेहत की देखभाल के बिना पूरा हो सकता है? इन कंपनियों को समझना चाहिए कि कर्मचारी कोई रोबोट नहीं हैं। वे इंसान हैं, और उनकी भी भावनाएँ और जरूरतें हैं।
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