आंख भर आई जो किसी से मुलाकात हुई,
खुश्क़ मौसम था, मगर टूट के बरसात हुई l-
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किसी के फुर्सत के बगल में कोई छलावा है,
किसी के मुलाकात से मानो कोई असर लगता है
अंतरंगी है जो मेरे अपने चाहने वाले है सभी
स्वाद उनका न जाने मुझे क्यूँ जहर लगता हैं
सब कुछ मुकद्दर के पंजे में है दबिश ये जनता हूं
हाथ में रखे वो अपनेपन का कोई खंजर लगता है
तर्ज़ है वो एक से बनके भीड़ में जो आ गए
यहीं पे उनका याराना, यहीं खूनी मंज़र लगता है
चलो ये सिर्फ बाते है, जो किसी से बैर नहीं रखती
कभी कभी मुझे दिखता है, कभी कोई कहर लगता है
रिश्तों के सब मायनों को तुम ही जरा सम्भाल लो
इंसान का इंसान होने में ही, कई पहर लगता हैं
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सावन की ये पहली बारिश क्या उधार रख लूँ
अभ्र को बरसते देखूँ, भीगे करार रख लूँ
महीन से मालूम पड़ते हैं सूखे ख़याल के बगीचे
आओ तुम जो ऐसे, तो गुल हजार रख लूँ
घाम कहीं, कहीं बदरा काली उलझन से लगते है
मौसम की अदा, मसलों का उक्त सार रख लूँ
रुक-रुक के गर हो झड़ी तो मचल से जाते हैं
भीग जाऊँ, देखूँ बस या फिर तकरार रख लूँ
नसीहत कोई दे तो सही, सर्द से बचने की
थाम के पावों को अंदर, सच आभार रख लूँ
इस बारिश पे अल्फाजों को भी बहाने मिल गए
पिरो के इन्हें "चंदन" किताब में, बार बार रख लूँ
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बात इतनी सी रही कि शहर पराया लगा
तपती दोपहरी नाप, सिसक के आया लगा
उम्मीद हैं क्या कोई पूछे दहलीज़ से
राहों में शजर न मिला, फिर भी साया लगा
मशवरा किन किन लबों से मांगता ही फिरे
उल्फ़त यूँ रहा और ताबीर,भी जाया लगा
निगरानी जिंदगी की बड़ी सख़्त हो गयी,
बचा हुआ भी कुछ, सब बकाया लगा
खामोश अंदाज ही मुनासिब, दोस्ताना हैं
वो मुझसे ही बिछड़ा, मुझमें समाया लगा
किन किन से रहा होगा वस्ल, वास्ता
गज़ल न कहा गया, "चंदन" भरमाया लगा
-चंदन वर्मा
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सड़कों पर रौनक होंगी,
जब पैर पसारे होंगे बाहर...
हाथ मिलेंगे, साथ मिलेंगे,
उस पल का हाँ, हैं इंतजार..
अपने तेरे जो दूर थे,
मिलने से अब तक मजबूर थे..
सब तरफ होगा मिलन,
उस पल का हाँ, हैं इंतजार..
जाने कितने दर्द सहे,
कैद दीवारों में रहे..
अब न जकड़न होगी कुछ,
उस पल का हाँ, हैं इंतजार..
जान थकी थी आन झुकी थी,
जब जगहों पर वक्त रुकी थी,
होगा जब आजाद इंसा,
उस पल का हाँ, हैं इंतजार..
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ये खुली आँखों में सपने जो बोझ बन गयी,
बस दर्द रह गया कहानी रोज बन गयी.
लाचार था मैं जो चलता कुछ उम्मीद कर,
ये गरीबी मेरे जख्मों की खोज बन गयी.
फकीर हूं सड़क से मैंने चीजें भी ली हैं,
जो निकला हूं भूखा उसके नतीजे भी ली हैं.
टूटी थाली है मेरी जो आवाज कर रही हैं,
मैं थक गया तो थकान के पसीजे भी ली हैं.
कुछ टुकड़ों से पाला हूं जरूरत को अपने,
समझा के सारी काट लिए हकीकत को अपने.
बेरहम अब इस दुनिया में हैं न बाकी और कुछ,
मोड़ दिए अब छोड़ दिए हर जुर्रत को अपने.
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इत्तेफाक नहीं य़े तुम्हारे नयन को देखे भीगते,
मालूम हुआ तुम आज भी शराफत ओढ़े हो मुहब्बत में..."-
ये क्या हुआ कि आज पूरा कहर ढा गया,
सदमे में हर देश पूरा शहर आ गया..
हम मानव न अंत के न आदि के हुए,
विश्व जगत को पूरा ये जहर खा गया..
दर-ओ-दीवार कुछ मकाने भी खामोश से लगते हैं,
जो जागे इंसान यहां, कहाँ कभी होश में लगते हैं..
कर के घायल इस धरा को घर में बैठे चुप हैं लोग,
मौत आए तो आ जाए चंद वक्त अफसोस में लगते हैं..
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आँखे ओझल न हो जाए मशगूल गलियों में कभी,
अंधेरे के रहस्य में अपना अक्स समेटे बैठा हूं..
हर जर्रा, हर कोना शहर का नाप आना तुम,
रेत के आँचल में खुद को महफूज़ लपेटे बैठा हूं..
फकत कहानी हैं राहों की पल में छिन-बिन हो जाए,
इल्तिजा कर मोह में उसके रोग लगाए बैठा हूँ..
बंजर मैदानों में जैसे जान सी आयी हैं वापस,
जीने की लालस में कम्बख्त जोग लगाए बैठा हूँ..
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नजरों के अमाम में कई मुद्दत रज़ा काटी हैं,
अब हैरत हैं कैसे उनका लहजा सुधर गया..
आयात ही याद आये बिरहा जैसे बढ़ के आया हैं,
बेचैनी, आहट में जबरन इश्क उतर गया..-