"खूब गूंजेगा"
बुझेगी शम्मा जिस दिन अंधेरा खूब गूंजेगा
सन्नाटा भी तभी से शोर बनकर खूब गूंजेगा
शाम फिर लौटा रही परिंदे आशियानों पर
सफर की हर थकावट का फसाना खूब गूंजेगा
की खाली से है सारे दिल यहां खामोशियां फैली
किसी की आहटों का फरमान भी खूब गूंजेगा
नहीं दिखता दिलों की चारदीवारी में भरा क्या है
दीवारों पर कान लगाओ हंगामा खूब गूंजेगा
बने है कांच के रिश्ते संभल कर हाथ में रखना
की इनका टूटना गिरना जहन में खूब गूंजेगा
फटी जेबें अगर हों फिर क़ीमत हाथ में रखना
सिक्कों का खनकना भी यहां पर खूब गूंजेगा।
✍️ चन्दन दूबे-
"सप्रेम"
है सोचा तेरी इक कहानी लिखूं
खुद को तेरा परवाना आशिक़,
तुझे अपने दिल की रानी लिखूं
फूलों की बगिया में एक खिलता महल,
देख तुझको भंवरे भी जाए बहल,
शाम को खिड़कियों पे
चांद का परदा हो,
किरणे छू न सके सुबहा तुझको,
नभ में सूरज भी अफसूर्दा हो।
लहरें सागर की, आवाज देती रहे
नाज़ में अपने तू इठलाती रहे
वो पुकारे तुझे सुबह–ओ–शाम पहर,
तू कोई अलबेली धुन ही बुनाती रहे ।
बदला करें मौसम जहां के सारे,
तेरी पलकों के एक इशारों पर
तेरी मुस्कानों के मोती ये चमके,
बिजली गिर जाए सितारों पर।
तू एक चाहत का दरिया बन जा
और नमक सी चाहत मेरी हो,
घुला रहूं हर रग मैं तुझसे,
मैं आत्मा देह ये तेरी हो।-
"संभाल लेना"
हसता हुआ चेहरा कभी मायूस दिख जाए,
सूखे नैनों के झरने से दो आंसू गिर जाए,
दर्द की दीवार गिर पड़ी है ऊपर अब मेरे
बिन चोट के तड़पता मिल जाऊं तो संभाल लेना।
हाथ काले दिख जाए तो समझ लेना
वो मेरे टूटे हुए सपनों की राख होगी,
जो बारिश सुकून दे बेजान चेहरों को
उसकी हर बूंद से पिघलती मेरी आंख होगी,
धूल भरी राहों में मिट्टी सा मैं बनकर
भटकता मिल जाऊं तो संभाल लेना।
एक मौसम पतझड़ बागें उजाड़ता है
इक हम हर रुत में बिखरे नजर आते हैं,
नम रहती है रेत दरिया किनारे उसे छूकर
खुशी के झरने में भी हम रूखे नजर आते हैं,
बांध रखा है जख्मों से खुद को फिर भी
गमों में बहता मिल जाऊं तो संभाल लेना।-
नहीं होता मुकम्मल इश्क़ जहां में सभी को
कुछ कब्र में तो कुछ सब्र में चले जाते हैं।-
"मां"
कौन कहे आ जा मैं तुझको
गोद में लेकर लोरी गाउं
तेरे सिरहाने पर जग कर
मैं सारी दुखिया रात बिताऊं
राह तकूं तेरे आने की
चिंता में एक पल चैन ना पाऊं
सोचता हूं अब पर बाते सारी
पर किसी से अब बयां नहीं होती
खुद रो रोकर आंसू पीते है
जिनकी दुनिया में मां नहीं होती
दुनिया सुनती है हस देती है
पर उसकी आंखे नम होती हैं
कितना भी कह दूं वो सब रखती है
क्या मां सागर से कम होती है
भूखे पेट ही सो जाते हैं अक्सर
खा कर धूप की सूखी रोटी
रहती है बंद आंखे फिर भी
बस नींद कभी पूरी नहीं होती
मन की बातें मन में ही रख कर
मन को अपने मैं मार रहा हूं
देख ना तेरे ना होने से
मां मैं खुद से ही हार रहा हूं
तरस रहा हूं आंचल की छाया
वो दिन जब तेरे हाथ से खाया
ये छत भी उतनी छांव नहीं रखती
जैसा था तेरे हाथ का साया
ना खुशियां ना मुझको जहां चाहिए
जहां तेरा दर हो वहां चाहिए
नहीं चाहिए ये दुनिया मुझे अब
मुझे मेरी दुनिया मेरी मां चाहिए।-
"गमों का खज़ाना"
न लौटे आ सकूं वापस मैं ऐसा वो जमाना हूं
कोई गाता नहीं मुझको मैं बिसरा वो फसाना हूं
किया ना चांद ने रोशन न सूरज भी नजर आया
जला दिये में जाकर मैं वो बेबस परवाना हूं
ये चेहरे पर हंसी मेरी ये सारी प्यार की बातें
जो खुश दिखता हूं बाहर से मैं अंदर से वीराना हूं
छिपाऊं मैं कहां खुद को बनी है जान पर मेरी
यहां हर घूरती कातिल आंखों का निशाना हूं
कभी बारिश कभी तूफां कभी बंजर सा रेगिस्तान
नहीं रुकता कोई आकर मैं उजड़ा सा ठिकाना हूं
ना खोलना मुझे के तुम आंसुओं से भर जाओगे
मैं बदन की पोटली में बंद गमों का खज़ाना हूं।-
"खेल जिंदगी का"
कश्ती थी दरिया में दूर है किनारा
बड़ी आरजू से साहिल ने है पुकारा
आईने में बैठे शख्स ने मुझसे पूछा
और बताओ क्या हाल है तुम्हारा
जुस्तजू रही ताउम्र खुद को ढूंढ़ा मैने
तन्हा अकेला कहां बैठा है बेचारा
लहरों में तैरता रहा अपनों के सहारे
मझधार में सब ने कर लिया है किनारा
दर्द, सितम, धोखे, नफरत और बेवफाई
सिर पर मेरे ही ये इल्ज़ाम है सारा
दुआएं मांगी उसको चमकता देख मगर
ना पूछा किसी ने क्यों टूटा है तारा
जिंदगी और मैं खेलते रहे जो खेल उम्र भर
जिंदगी का ही रचा हुआ ये खेल है सारा।-
"धड़कन"
शब ए गुलशन से एक पैगाम आया है
भवरों के ज़हन में तेरा नाम आया है
ख्वाहिशों की दीवारों पर नाम लिखा तेरा
अरसों बाद दिल को आराम आया है
हार बैठे दिल तुझ पर खो कर चैन अपना
हुस्न ए मल्लिका तुझे मैने ईनाम पाया है
राहों में बिखरे फूल तेरी राह देखने लगे
फिजाओं में जब से तेरा नाम आया है
बन गया हूं जां मैं परवाना तेरी खातिर
दीया जलाने चौखट तू जिस शाम आया है
इक पल बैठे कर निहार ले देने दे मुझको
प्यासी आंखों में ये आरजूएं तमाम लाया है
बेरोजगार थी धड़कनें एक जमाने से मगर
अब जाकर इनको धड़कने का काम आया है।-
"नव वर्ष 2024"
यादों की फुलझडियां फूट पड़ेंगी
पीछे मुड़कर जब गुजरा वक्त निहारेगा
कुछ गलतियां भी किया होगा जरूर
फिर आगे बढ़कर उनको तू सुधारेगा
कुछ ख्वाहिशें भी बचा के रखी होंगी
पाने की चाहत दिल के कोने में कहीं
सफर नया शुरू होगा तेरा चलकर आगे
जो पिछला रास्ता छोड़ आया था वहीं
थोड़ी नादानियां बचाकर आगे आना
इन नई राहों में हंसने के काम आएंगी
मुंह फेर नहीं सकता तू परछाइयों से
तू जिस डगर ये भी तेरे ही संग जायेंगी
भूला दे अब तक जिसने दिल दुखाया
क्या हुआ जो तूने अपना हाल ना बताया
अब नया सफर नया फसाना लिखना
नए साल से खुद को तू नया रखना।-
"जलन"
नाम उनके हर जाम पिलाया गया
इश्क़ में अश्क को फिर मिलाया गया
शोख जिद्दी थी उनकी वो यादें सभी
जहर पीकर ही जिनको भुलाया गया
उनसे मिलकर हमे इश्क की भूख थी
कसमों का हर निवाला खिलाया गया
बह रहा देखो आंखों का काजल मेरे
शौक से जिनको था तब लगाया गया
जल रहा था जो आशिक इश्क़ की आग में
ख़ाक होने पर ही उसको बुझाया गया
थी खुली आंखें आशिक–ए–बेजार की
मौत की सेज पर जब वो सुलाया गया
पोछता ही रहा रुख से अरमान "चन्दन"
फासलों से मैं था हमेशा रुलाया गया-