चंचल
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चाँद को पता था कि कोई उसके दीदार का दीवाना है,
चुपचाप उसे ताके जो खुद के रूह से भी बेगाना है।
हर रात उसकी रौशनी में उसने जाम उठाया है,
साक़ी नहीं कोई, फिर भी वो नशा पुराना है।
ख़्वाबों की छांव में उसकी आहट सी महसूस हुई,
लगता है वो पास नहीं, फिर भी दिल का ठिकाना है।
ना बात हुई, ना मुलाक़ात, फिर भी ये इत्मिनान है,
उसकी यादों में भीगना ही जैसे कोई अफसाना है।
हर शाम निगाहें ढूँढें उसे तारों की बारात में,
पर चाँदनी कहती है वो तुझमें ही छुपा मस्ताना है।
आईना भी अब सवाल करता है तन्हा चेहरे से ,
क्या कोई तुझसे दूर रहकर भी तेरा परवाना है?
राख हुईं उम्मीदें सारी,फिर भी इक शमा सी जलती है,
शायद इस आग में ही उसका अपना आशियाना है।
वो साथ न होकर भी हर लम्हे में शामिल रहा,
तभी तो धड़कनों ने उसके होने का एहसास जाना है।
आँसू छुपा लिए पलकों में, मुस्कान लबों पर रख ली,
ये इश्क़ नहीं, इबादत है इसका यही फ़साना है।
चाँद को पता था कि कोई उसके फ़िराक में जलता है,
लेकिन रूह को भी यकीन था,ये प्यार ही एक पैमाना है।
©चंचल "मृदुला"
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गुमान है उनको, वो किसी को पगलाने का हुनर रखते हैं,
हम भी वो शय हैं कि पत्थर को पिघलाने का असर रखते हैं।
जो देख लें हमको तो मंज़र ही बदल जाते हैं,
हम निगाहों में मोहब्बत के समंदर का सफर रखते हैं।
शब के अंधेरों में भी जो राह दिखाए सदा,
हम दिल के उजालों में ऐसा शजर रखते हैं।
बिखर के भी हम खुशबू की तरह महकते हैं,
दिलो में बसने वाले जज़्बात अमर रखते हैं।
छुपा सकेगी कहाँ उनको ये बेरुख़ी की दीवार,
हम दर्द सहकर भी लबों पे सबर रखते हैं।
फासले बढ़ा लें वो जितने भी चाहें मगर,
हम ऐसे रिश्तों में भी सादगी का बशर रखते हैं।
वो जो सोचते हैं हमें तोड़कर चले जाएँगे,
हम राख से भी जलने की उमर रखते हैं।
© feel_The_Writing-
फरेब का हर नक़ाब उतरता गया,
भरोसे का हर धागा बिखरता गया,
दिल के आईने में बस धुंध ही ठहरता गया।
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जब छा जाती है तन्हाई, दिल को बहुत सताती है,
यादों की परछाईं हर सू, आँचल में बिखर जाती है।
खामोशी की चादर ओढ़े, रातें लंबी लगती हैं,
आँखों में सूनापन लेकर, ख़्वाब भी डर जाते हैं।
सन्नाटे की गहराई में, चीख़ कोई दब जाती है,
सांसों की धीमी लय में, दर्द कोई गुनगुनाती है।
मुस्कानों की चाहत दिल में, पर होंठ नहीं खुल पाते,
आँखों के रस्ते अक्सर, अश्क मगर बह जाते।
चाँदनी भी खामोश सी है, तारे चुप हो जाते हैं,
दिल के वीराने को जैसे, मौसम भी समझाते हैं।
हर आहट पर सिहर-सिहर कर, उम्मीदें जग जाती हैं,
पर फिर से मायूसी की सरगम, दिल में बज जाती है।
तन्हाई की गलियों से जब, दिल मजबूर गुजरता है,
इक उम्मीद का दीपक जलकर, हर साया संवरता है।
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