Chanchal Karn   (चंचल कर्ण)
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Weren't Mature Enough...🤞
Joined 12 June 2021


Weren't Mature Enough...🤞
Joined 12 June 2021
1 MAY 2022 AT 8:47

"कालचक्र हूं मैं"

कोई बैठकर खा रहा हैं,
कोई पसीना बहा रहा हैं;

ना समझें मोल जो वक्त का,
सरेआम लुटता वो जा रहा हैं;

है जिंदगी चार दिन की,
बर्बाद खूब हो रही हैं;

प्रलय कर मौन धारण
संभतः ही आ रहा हैं;

बनकर मैं "काल" उसको,
कहती हूं कड़वी बातें;

बैठा वो ढीट बनकर,
हठ करता ही जा रहा हैं!

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22 JAN 2022 AT 20:49

क्या सही हैं और क्या गलत
इस बात का फेसला तू मत कर_ए_बन्दे...

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22 JAN 2022 AT 15:28

मेरे पास जिस रोज़ भी आना,
आना निष्पक्षता के साथ।

सिर्फ़ एक पक्ष की सुनकर,
गुनेहगार मान चले मत जाना।

बहुत कुछ ऐसा हैं जो छुट रहा हैं,
मगर दुखी मत होना बंद आँखों को करके।

मुझमें भी बाकी हैं रुदन की पाक कला,
हो सकें तो हाथ पकड़ पुछ लेना एक बार।

रोती हूँ सिसक कर हर हँसते हुए पल पर,
जी भरकर रोना हैं तुम्हारे आने के बाद।

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22 JAN 2022 AT 14:14

भर कर इस क़दर छलक रही हैं सांसें,
मन मौन होकर भी चिख रहा हैं।

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21 JAN 2022 AT 15:35

जब ख़ुद की लड़ाई ख़ुद से ही लड़नी पड़े तब,
सबका साथ छोड़ देना ही बेहतर होता हैं!

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18 JAN 2022 AT 16:41

सोचना जरा...

तुम कितने नटखट,
शरारती, और चुलबुले थे,

थे कितने हटी, शैतान
और जिद्दी इंसान...

सब ओर से देखा तुमको,
पर एक छोर फिरसे छुट गया,

छुट गया वो पल जब मुझे,
तुमसे अनगिनत शिकायत थी...

मर्म होगा मगर मर्ज पर तुम नहीं,
तुम्हारे कटीले शब्दों का बोझ हैं,

बोझ हैं हर सुकून और चैन का,
हो सके तो पूछना एक बार...

सोचना जरा की तुम ऐसे क्यों हो?
क्यों हो सबसे अलग, सबसे गमगीन...?

"हठी मन"

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18 JAN 2022 AT 16:32

एकाकीपन...

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29 NOV 2021 AT 17:05

"अखरता सुकून"

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29 NOV 2021 AT 13:55

"रुदन"

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25 NOV 2021 AT 9:39

सजे साज की सज्जा जैसे,
बनें चाँद बिन रात;

राह कटीले देख निहारु,
ओढ़ ढोंग की जात।

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