सोचना जरा...
तुम कितने नटखट,
शरारती, और चुलबुले थे,
थे कितने हटी, शैतान
और जिद्दी इंसान...
सब ओर से देखा तुमको,
पर एक छोर फिरसे छुट गया,
छुट गया वो पल जब मुझे,
तुमसे अनगिनत शिकायत थी...
मर्म होगा मगर मर्ज पर तुम नहीं,
तुम्हारे कटीले शब्दों का बोझ हैं,
बोझ हैं हर सुकून और चैन का,
हो सके तो पूछना एक बार...
सोचना जरा की तुम ऐसे क्यों हो?
क्यों हो सबसे अलग, सबसे गमगीन...?
"हठी मन"
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