बहुत खूबसूरत है ये शहर,मगर मेरा वो गाँव मुझे बहुत याद आता है
यूँ तो सब कुछ अच्छा है यहाँ बस मेरे गाँव जैसा नही है
वैसे यहाँ माशीने बहुत सी है वक़्त बचाने की खातिर फिर भी अजीब ये है कि यहाँ किसी के लिए किसी के पास वक़्त ही नहीं है
तब मेरा वो गाँव मुझे बहुत याद आता है
सार्दियाँ यहाँ भी वैसी ही है मेरे गाँव जैसी,खरीदे मैने भी है खूबसूरत और रंग-बिरंगे गरम कपडे,पर इन बाजारू कपडो में वो माँ के हाँथों से बने स्वेटर की छुअन और प्यार भरे गरमाहाट का एहसास कहाँ मिल पाता है
तब मेरा वो गाँव मुझे बहुत याद आता है
बड़े बड़े होटलों में खाये है बहुत ज़ायेकदार खाने अब शहरों के कोने-कोने ढूंढते फिरते है मगर वो मिट्टी के चुल्हे पर बने खाने का स्वाद कहीं मीलता ही नही है
आज कल इंटरनेट की दुनियां मे किस्से कहाँनियो की कोई कमी नही है पर बचपन में जब हम अपना नाम भी ठीक से नही ले पाते थे तबकी नानी दादी से सुनी कहाँनियों से मिली सिख तमाम उम्र भूलते ही नहीं है
तब मेरा वो गाँव मुझे बहुत याद आता है
यूँ तो गूगल हमें देश-विदेश और जाने किस-किस का इतिहास,भूगोल बताता है लेकिन हमारे बुजूर्गोे ने ज़िन्दगी के तजूर्बे से जीने का जो हुनर हमें सिखाया है गूगल ये हुनर कहाँ सिखता है
तब मेरा वो गाँव मुझे बहुत याद आता है
बहुत खूबसूरत है ये शहर,मगर मेरा वो गाँव मुझे बहुत याद आता है
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