हर युग मे
समाज ही समर्थक रहा है स्त्री के अपमान में
सीता की परीक्षा और द्रोपदी का चीरहरण आज भी खलता है इतिहास में
पांडवो की निष्क्रियता ,पितामह का मौन
अखरता है शांत सभा मे
कहते हो,,
महफूज़ रहेगी घर के बन्द दरवाज़ों में
तो द्रोपदी कहा लूटी थी !!??
घर मे या बाज़ारो में ???-
हँसना ओर हँसाना फितरत थी उसकी
में नादान उसे इश्क समझ बैठी
वो चाहता था हज़ारो को
मैं अपने आप को कुछ खास समझ बैठी
मशरूफ था वो मेरे जिस्म पर ,ना मुझे गुरुर था अपने हुस्न पर
वो था सिर्फ वस्ल का शौकीन था ,,में उसे उलफत समझ बैठी।।।।-
हर कोई मगरूर है यहां हुस्न के जोर पे
हम तो यहां उल्फत की जुस्तजू में है
दिन बीत जाते है वस्ल की इंतज़ार में
राते हमारी अश्को के शोर में है ।।।-
महामारी के इस दौर में हर इंसान परेशान नज़र आया है ,,,
हर शख्स की आँखों मे डर का झलकता साया है ,,
वक्त वक्त की बात है
खुले आसमान में हर वो पंछी!!! आज मुस्कुराया है
आज इंसान पिंजरे में बंद ओर
पंछी!! बेखोफ उड़ता नज़र आया है ।।।-
एक दोस्त है मेरा
दोस्ती के नाम पर सब कुछ है मेरा
रिश्ता कुछ ऐसा है उसका मेरा
कि
बिन कहे ही सब हाल जान लेता है मेरा
यु तो दुनिया वाले रोज़ गिराते है मुझे
पर गिरते हुए वो हाथ थाम लेता है मेरा
इस मतलब की दुनिया मे कोई नही है किसी का
एक वही है जो बेमतलब साथ देता है मेरा
अकड़ बताता है ,,रूठ भी जाता है
मेरी हरकतों से परेशान भी हो जाता है
पर उसको पता है उसके सिवा है ही कौन मेरा।।।।
-
भाषा कहां से सीखू मैं ऐसी जो बात करा दे
तेरी खामोशी से मेरी ।।।।-
एक रिश्ता है उलझा सा उसका सुलझना बाकी है ,,,
कुछ बाते है अनकही सी उनका बया होना बाकी है
लम्हे मिले है उसके साथ पर उन लम्हो को अभी जीना बाकी है
हँसते है उनके साथ पर आखो से आँसू गिरना बाकी है ,,,
अभी तक तो उनको हमसे मोहब्बत हुई है जनाब,,
इज़हार करना बाकी है ।।।।💕💕
-
Mobile ki light se roz akhe jhle to bhi fursat nhi ....
Vo gaanv k ghr ki chhat pr sona
Tare gin na kisi ko bhi yad nhi .....-
भूल कर उसकी मोहब्बत रात फिर अय्याश हो गई नशे में ,,,
आज फिर वो इंतज़ार में फोन के रोते रोते ही सो गई ,....-
साथ उसके ये दुनिया जन्नत सी लगती है,,
रोज़ उसे एक बार देखने की तलब सी रहती है,,
उसकी आँखों मे खुद को देखना मुझे मेरी एक ख्वाहिश सी लगती है ,,,,
ओर तो ओर जनाब ,
उसे जाता देख जिस्म तो जिस्म रूह तक काँप उठती है।।।-