धर्म और रईसी में इतना अभिमान क्यों है
गिरती इकोनॉमी मुफलिसी में परेशान क्यों है
यूं तो रहना है इस फिज़ा में अपनों के बीच
पग पग में जिंदगी का इंतहांन क्यों है-
मानवता समता भाईचारा और एकता के विकास के लिए
अगर राह में आए कोई बैरियर तो कालकुट विष पी लिए-
चंचल चंद्र की चपल चादर चंचलता
चारु चंद्र चुप चुप चल चल चप्पल पहनता-
आखिर देर से ही सही ठंड की शुरुआत तो हुई
बरसा शरद के बाद हेमंत से थोड़ी बात तो हुई
सुनहरे धूप की आस लिए रातें सोती है
कोई गरीब खुले आसमान तले बिना लिहाफ रोती है-
पलकों को नम कर देते है
दिलों में ग़म भर देते है
रह जाती है बस यादों की रहगुजर
कभी अपनों को बेरहम कर देते है-
हर तरफ शोर है
विस्फोट है
धुआं है
चिंगारी है
फिज़ा में दमघोटू मौसम की जो एक तैयारी है
कुदरत को जो दोगे वहीं तो लौटाएगा
शायद कभी कोई कयामत की बारी है?-
अब तो दासता की बेड़ियों को
हट जाने दो
पहले हम गुलाम थे अंग्रेजों के
अब है कॉरपोरेट के
अब तो समता से बेड़ियों को
कट जाने दो-
उपग्रह हो धरती का चक्कर लगाते रहना
समुन्दर में ज्वार सदा लाते रहना
364 दिन करे जो लड़ाई अपने पतियों से
कमबख्त को 1 का उल्लू तो बनाते रहना-
अगर उपवास रहने से उम्र बढ़ती तो अस्पताल न होते
घर घर न होती किसी से द्वेश क्लेश तलाक न होते
प्रेम है तो सब कुछ है
जीवन का सब सुख है-