बेवजह नहीं हुआ कुछ ,जरा बात को समझो
हालात है नाजुक, सनम जरा हालात को समझो
बेरुखी तुम्हारी मुझसे, बेवजह न हो बेशक
ठंड बहुत है दिसंबर की, सनम जरा जज्बात को समझो
मुंह फेर के सोचने से अच्छा, बात करते है
मुलाकात जरूरी है ये,मुलाकात को समझो
तुम भोर की ओस सा बिछ जाओ मुझ पर
शरद की इस ऋतु के हालात को समझो
जमीं बर्फ जब घम जायेगी, अफसोस की परत निकल आएगी
कुछ हरियाली प्रेम की लगा दो, बसंत के रंग राज को समझो
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