नम थी आंखे, कम थी आंखे
इतना गम था बहाने को
संग थे तुम मेरे जब भी
कितना कुछ था बताने को
सोचा तुम अब कहाँ जाओगे
एक पल में ना थे, ये जताने को
बहुत जुटाई हिम्मत फिर भी
डर तो थोड़ा लगता है
बच्चे कुछ भी गलती कर दे
उठे उंगलियां ,
पिता का साया खलता है
तुम थे तो बिस्तर, बिस्तर था
हर सिलवट पर,प्यार पड़ा था
सुबह तुम्हारा दीदार मिला
यही पूरा संसार हुआ था,
पर अब
रात बड़ी ही ,बड़ी सी लगती है
बिताने में कितनी करवट लगती है
सुबह हुई फिर सब भुलाने को
कुछ अपना कुछ तेरा साथी
दोनो का साथ निभाने को
नम थी आंखे, कम थी आंखे
इतना गम था बहाने को-
कुछ अनुभव साथ आयेंगे
कुछ यादें साथ आयेगी
और मैं फिर कुछ पहले से
जरा और बदल जाऊंगा-
बेवजह नहीं हुआ कुछ ,जरा बात को समझो
हालात है नाजुक, सनम जरा हालात को समझो
बेरुखी तुम्हारी मुझसे, बेवजह न हो बेशक
ठंड बहुत है दिसंबर की, सनम जरा जज्बात को समझो
मुंह फेर के सोचने से अच्छा, बात करते है
मुलाकात जरूरी है ये,मुलाकात को समझो
तुम भोर की ओस सा बिछ जाओ मुझ पर
शरद की इस ऋतु के हालात को समझो
जमीं बर्फ जब घम जायेगी, अफसोस की परत निकल आएगी
कुछ हरियाली प्रेम की लगा दो, बसंत के रंग राज को समझो-
मुझे मौसम के बदलने ने, सिखाया कुछ नही
उसके के बदलने ने, मौसम का बदलना सीखा दिया-
तेरा मेरे होने के
बीच बस इतनी दूरी है
जैसे दो किनारों के बीच
एक सागर की होती है-
मैं अक्सर यूं ही नहीं ,तुमसे गिला करता हूं
कुछ इशारे तुम्हारे भी है,मैं यूं ही नही मिला करता हूं-
उनसे हो जाएगा
आंखे मिलने से जीना दुश्वार हो जायेगा
खुमारी इश्क की छाती रहेगी जब तक
पत्थर सा दिल पिघलकर प्रेम साकार हो जायेगा
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