Chaitanya Tomar   (चेतन)
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Joined 15 June 2018


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5 JAN 2022 AT 20:04

जो करना था महसूस वो कागज़ो ‌पर संजोने में लगे हैं।
ख्वाबों को जज़्बातों ‌को हम‌ ख़ुद में मुकफ्फल करने ‌में लगे हैं।

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5 JAN 2022 AT 19:41

लगती है मग़र फ़िरदौस नहीं है जिंदगी।
ख़रीद लें खुब इमारतें बिन‌ घर खानाबदोश है जिंदगी।





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29 DEC 2021 AT 19:53


ताब ए इश्क‌ तेज है बहुत, हर दार जला देगा।
ग़र दाम ए उल्फ़त चुना है तुम ने, इश़्क दार बना लेगा।

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19 DEC 2021 AT 14:47

मंजिल के सफर में हमें मकान मिले बहुत,
पर घरौंदा था जैसा अपना वैसा कोई घर न मिला।
खुब मिले इत्र में लिपटे बदन महफ़िलों और बाजारों में,
पर हो तेरी खुशबू जिसमें ऐसा कोई शहर न मिला।

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2 OCT 2021 AT 11:28

सफ़हा ए हयात मेरा लबरेज है उसकी कही ,अनकही बातें से।
कर लेता हूं मुलाकात दराज ए वक़्त में जाकर, खुशबू आती है उसकी मेरी यादों से।

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14 SEP 2021 AT 18:23

जिन्दगी का काग़ज़ लिए मेरी,
लिख रहे हो जो कहानी शक़ है ‌रंग भर उसे तुम अधूरा छोड़ दोगे।
ख्वाहिश थी पतवार दे दूं तुझे ज़िन्दगी की,
पर डर है कि उलझे कहीं तूफ़ान में फिर कश्ती को मेरी तुम बेपरवाह छोड़ दोगे।

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14 SEP 2021 AT 17:47

उकेरा है उसने लम्हों को किताब ए जिंदगी पर इस कदर,
अक्सर लगता है कि कातिब ए हयात नौसिखिया है मेरा।

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21 AUG 2021 AT 9:28

खिड़कियां तो बहुत थीं उसके मकान में,
बस खुलती‌ नहीं थीं मेरी मौजुदगी में।

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13 AUG 2021 AT 12:44

क़फ़स ए जज़्बात से छूट बगैर परों के उड़ गया है दल ख्वाबों के सहारे।
शहर ढुंढ़ लिया है उसने उसका बस घर बनाना है उसे ख्वाहिश के किनारे।

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30 JUL 2021 AT 11:38

जज़्बातों के बवंडर में घर मकान बन जाता है,
आता है जब होश तब वक़्त चला जाता है।
समझ आती है अहमियत किसी की देरी से ,
आखिर में बस यादें रह जाती है शख़्स चला जाता है।

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