जब वक़्त ही खराब हो तो किसी को आजमा कर क्या मिलेगा
यकिन मानो फिर जो मिलेगा जमाने में बेवफा ही मिलेगा
ग़र ना हो ऐतराज़ तो एक नसीहत मान लो जनाब
अपना वहीं है जो मुसीबत में आ गले मिलेगा।।-
किसी के चेहरे को अपना आइना बनाने वाले
सम्भल कर रहे जरा इसां को खुदा बनाने वाले
हम तो पहले से बदनाम है मोहब्बत-ए-शहर में
खैर मनाएं खुद को शरीफ-ए-जहां बनाने वाले
जिसके डर से मैं जमाने भर को खंगोल आया
आस्तीन में सांप निकले मुझे अपना बनाने वाले
आया जब ग़म-ए-सैलाब जी भर के रोया "चांद"
सम्भल ना पाए खुदको दिल-ए-पत्थर बनाने वाले-
जालिम चुप हो गए लफ्ज़ आंखें भी थक गई,
उसके इंतजार में जाने कितनी शामे ढल गई
तड़प उठा दिल तन्हाइयां भी चीख उठी
नही आएगा वो जब उसकी खामोशियां कह गई।-
किसी ने उड़ते परिंदे को आसमां में मारा,
कमबख्त मुझे इश्क ने बड़े इश्क से मारा।
दूरियों ने मारा मुझको कुछ इस कदर,
जैसे पहली दिदार पर नजरों ने मारा।
सितम मोहब्बत महिना और उनकी बातें,
फिर जालिम की बातों ने बातों से मारा।
नशे में रही तब तक बची रही 'चांदनी'
फिर मुझे उनकी यादों ने याद से मारा।-
मसरूफ रहते हो दिनभर की भाग-दौड़ में
जाना फुर्सत में कभी पास बैठो रात में
ये बेताब बारिश मिलने आती है जमीं से जैसे
यारा तुम भी मिलने आओ कभी रात में
चांद रात में जब छेड़ी मोहब्बत की बातें
जालिम नजरें हया से झुक गई रात में
देखो ! इशारा समझो हाथ पकड़ लो मेरा
यार कैसे बताऊं डर लगता है मुझे रात में
इस हसीन ख्वाब से जगु भी तो कैसे आखिर
'चांदनी' गुफ्तगू बाकी है अभी हमारी रात में-
ये दर्द कैसा है क्यों मेरे साथ है
इन दिनों दिल बड़ा उदास है
झांककर खिड़की से हालात पे मुस्कुरा रहा
वो बेशर्म चांद जो तारों के पास है
हालात-ए-जीस्त ठीक होगी कभी न कभी
उठ रही मन में होले-होले ये आस है
लाचारी का आलम देखो ना 'चांदनी'
समंदर भरा है आंखों में होंठों पे प्यास है-
मेरी कहानी के दो किरदार है इश्क में
अफसोस तबियत से बीमार है इश्क में
एक दूजे के दिल में रहकर भी तन्हा है
हाय खुदा! ये कितने लाचार है इश्क में
घर जात समाज और ये जालिम जमाना
जाने कितनी बंदिशें पहरेदार है इश्क में
अश्क जुदाइयां तन्हाइयां जाने क्या-क्या
बताओ चांदनी आखिर किसे करार है इश्क में-