किसी ओर की गलती की सज़ा,
खुद को देता रहा हूँ मैं ।
हाँ यूँही बेमतलब ग़ुस्सा
हरदम होता रहा हूँ मैं ॥-
रास्ते मे मिलते जाते हैं एक से एक चित्तचोर ।।
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जो शब्दों में लिखा जाए वो दर्द ही क्या ।
जो आँखो को पढ़ ले वो तो फिर मर्ज़ ही क्या ॥-
थोड़े से तूफान में हड़बड़ा कैसे दे
दिल में जल रहा चिराग़ बुझा कैसे दे ??
अभी तो शुरू हुआ है सफ़र ऐ क़यामत
इतनी जल्दी उनको भुला कैसे दे ?
हल्की ठंडक सी पड़ी है चारोतरफ
इतनी सी में अलाव जला कैसे दे?
यू तो घड़े से रिस रहा है पानी धीरे धीरे
इतने में समंदर की तरफ दौड़ लगा कैसे दे?
हम तो माना नही है जरूरत किसी की
पर सिर्फ इस बात पर खुद को मिटा कैसे दे?
दिल मे जल रहा चिराग़ बुझा कैसे दे ...।।-
दरकीनार है फ़िलहाल ज़रूरतें सारी,
ये ख़्वाबों को हवा देने का दौर हैं ।-
एक समेटता हूँ तो दूसरा बिखर जाता है ।
रिश्ते और काम कि कुछ ख़ास बनती नहीं शायद ।।-
मन के तार हैं फ़िलहाल तार तार,
धुन कोई कैसे फिर सुनायें ख़ुशगवार ।-
हर चीज की क़ीमत
होती है सबसे ज़्यादा,
उसके आने के पहले
या उसके जाने के बाद ।
बीच के समय में तो बस
होता रहता है नापतोल ।
क्या हो सकता है?
और क्या था उस चीज़ का मोल ।।
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बचपन में बेदाग था जो ज़माना,
जाने कैसे जाने कब दागदार हो गया ।
अतरंगी सा अपनी कहानी का नायक जो,
जाने कैसे जाने कब महज एक किरदार हो गया ।।-
क्या वाकई में वो बाते थी अर्थहीन,
समय के साथ जो अब लगती है अर्थहीन ।
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