I feel,
I have traversed a bit,
But there’s still a long way to go.
I’ve become,
Aware of the journey,
Neither can I stop now nor go slow.
I’m doing,
What the present wants,
And when the future needs, I’ll do more.-
वो कहती तो हैं,
की वो हमें याद करती हैं,
और यह भी कहती हैं की,
की उस याद में,
ख़ासा वक़्त बर्बाद करती हैं।
ब-ख़ुशी मान लेते हैं हम,
हमें भी अच्छा लगता हैं,
की नयें चर्चों में, कम-अज़-कम,
वो हमारा पुराना क़िस्सा तो याद करती है।
कह कर जल्दी, निकल जाती है वो,
तेज़ी से, मशरूफ़ियत की और,
और सोचते रह जाते है हम,
की, इतनी शायद, फ़ुरसत भी ना हो उसको,
जिसमें इत्मीनान से वो हमको याद करती है।-
ना निचोड़ो मुझें,
निरस हूँ,
नहीं कुछ रस पाओगे,
ना उमेंटो कान मेरे,
सूखा नल हूँ,
नहीं जल पाओगे,
पर टूटेगा निरर्थकता का बाँध जिस दिन,
सृजन की मूसलाधार बारिश होगी,
शब्दों का तूफ़ान आयेगा,
तब लिखेगा शायर, शायद खूब लिखेगा,
तुम भी भीगोगे उस बारिश में,
तुम भी उस सैलाब में बह जाओगे।
-
नज़र सिर्फ़ बुरी नहीं,
नज़र अच्छी भी होती हैं,
प्यार भरी नज़र भी होती हैं,
चाहत की नज़र भी होती हैं,
फ़क्र भरी नज़र भी होती हैं,
आरज़ू भरी नज़र भी होती हैं।
नीहारों अगर ख़ुद के शृंगार को,
आईने में, ज़्यादा गौर से,
तो ख़ुद की लग जाती हैं।
वो संवारती हैं अपने लख़्त-ए-जिगर को,
काला टीका भी लगाती हैं,
फिर भी माँ की बच्चे को लग जाती हैं।
और सबसे शरीर हैं आशिक़ों की नज़र,
देखतें हैं उस हसीन को इतनी आरज़ू से,
उनकी तो प्यार भरी नज़र,
महबूबा की एड़ियों तक को लग जाती हैं।-
पिंडलियों पर लहरों की कोसी मालिश,
गीली बहती रेत में पंजे जमाये,
बिखरी हुई लटें अपनी अलग उड़ान भरते हुए,
मृगनयनी चक्षु क्षितिज पर टिकाये,
समुद्र की नमकीन हवाओं के आलिंगन में,
खुली बाहों को आमंत्रित फैलायें,
वो खड़ी थी वहाँ अपने विचारों को समेटे,
एक तरल प्रतिच्छाया दरिया पर बिखराये,
और इस मनमोहक दृश्य का आभास करने,
स्वयं सूर्य-देव भोर का पल्ला झाड़ कर आये।-
हैं ज़िंदगी मशरूफ़,
मशरूफ़ तू,
यह मालूम था,
इतनी थी, बस यह नहीं था पता,
पढ़ा जब इत्मीनान से,
लंबा मज़मून तेरा,
समझा शायद, तेरे दिल की बात,
और समझा भी,शायर, तेरी व्यथा।-
बहुत कुछ तो था,
पर शायद मुक़म्मल नहीं,
हाथ सवाल में बढ़ाया उन्होंने,
पर हमारा हरगिज़ पकड़ा नहीं,
थी शिनाख्त की दरकार उन्हें,
पर कोई बेवजह टटोला-टटाली नहीं,
सिर्फ़ उनकी नज़रों में ही तो क़ैद थे हम,
थी पूरी गिरफ़्तारी भी नहीं।-
कौन जाने कब फ़लक में,
मैं भी एक धुंधला सा तारा बन जाऊँ,
गुज़रते हूए ज़िंदगी की राहों से,
ना जाने कब, ज़िंदगी से ही गुज़र जाऊँ,
मुसाफ़िर ही तो हूँ, अकेले आया था,
ना जाने कब, अगले मुक़ाम की और बढ़ जाऊँ,
इस नश्वर हाड़-मांस के शरीर का मोह भी क्या,
कौन जाने कल ही, मिट्टी का ढेर हो जाऊँ।-
यह जो हैं हसीन ज़ुल्फ़े तुम्हारी,
थोड़ी तुमसे भी हैं ज़्यादा मनचली,
तरतीब से रखना चाहती हो तुम उन्हें यहाँ,
और वो शरीर, नसीम के आग़ोश में वहाँ चली।-
I am overwhelmed.
I should’ve listened to you.
I shouldn’t have left it for tomorrow.
I haven’t cried, almost true.
My heart squeezed by a distant story,
Empassioned, sad, a little blue.
Do all those we love become fairies?
And then fly away too.-