चाहत त्रिपाठी   (चाहतनामा ❣️)
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Joined 17 February 2021


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Joined 17 February 2021

बदल गई है रुत मगर शिकवा किससे करें,
बहुत है गमजदा मगर गिला किससे करें,
हम वो थे जो सितारों को भी हौसला देते
खुद बेजार बैठे हैं पनाह किसकी ले।
बैठे थे स्याह रातों की पनाहों में अकेले
होंठों को सीकर लफ्ज़ खामोश कर चुके थे
जो हुआ सो हुआ अब फरियाद किससे करें,
वो मंजर याद करते करते आंखों का काजल उतर गया
गाहे बगाहे यादों के झरोखों में याद किसे करे....

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छू लेती हूं आंखों से आसमां को,
टूटती नहीं मुझसे कुछ बेड़ियां जमीन की...

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रोशनी की ख्वाहिश में
खुशियां जला बैठे,
प्यार की ख्वाहिश में
सब कुछ लुटा बैठे,
बैठे थे हम वीराने में
कोई न था वहां,
शौक सारे पूरे करके
खुद में ही आ बैठे।

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भटकना जिन्दगी है,
ठहराव उसका हिस्सा है,
ठहराव मन का है,
बाकी अनकहा किस्सा है।

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जिंदगी के तमाम किस्से हैं,
हर किस्से में खुशी है गम है,
कहीं बेजार सी रुत है,
कहीं किसी की आँखें नम है।

रुककर लड़कर मिलना क्या है,
खोकर ही सब पाना है,
एक चीज के बदले में
बस कीमत एक चुकाना है।

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मिलता कुछ नहीं मुझको,
सब छूटता चला जाता है,
घने अंधेरे में दिया मेरा
बुझता चला जाता है।
क्या कहूं क्यों कहूं किससे कहूं,
जो सुनता है सुनकर मेरी
हंसता चला जाता है....

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जबरदस्ती न किसी को रोकना चाहिए
ना किसी को जिंदगी में रुकना चाहिए....
जिसे जाना हो उसे अच्छे से विदा जरूर करें.....

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बड़ी अजीब सी दुनिया थी वो,
बस हुकूमतों का ही राज था बस वहां,
बाकी सब लगे थे जी हुजूरी में,
किसी के जान की कीमत थी ही कहां?

इक रोज़ उन्हीं लोगों में से इक आवाज उठी
हम भी हैं इंसान वो बोल पड़ी,
लाल रंग की दौलत में सने हुए काले से हाथ,
बोलो भला कब तक दबाओगे मेरी आवाज?

भरी सभा में लगी गुहार सिंहासन ही डोल गया,
इक धीमी सी आवाज ने ही झूठ का धागा खोल दिया,
फिर , फिर क्या इक घमासान हुआ,
और हुकूमत पर धावा बोल दिया।

पर , पर दौलत के आगे कौन कहां कब टिक पाया,
फिर अपनी में से ही कोई जयचंद बना,
सनी रक्त से तलवारें, और लपटें उठीं ऊपर तक,
उस धीमी सी आवाज का गला भी पल में घोंट दिया।

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