लहर के खौफ़ में कब से खड़े हम
किनारों को सँभाले जा रहे हैं
क़फ़स की सब सलाखें खुल चुकी हैं
मग़र परवाज़ टाले जा रहे हैं
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पुराने ख़त सँभाले जा रहे हैं
ये कैसा शौक़ पाले जा रहे हैं
किसी दिल को मयस्सर ही नहीं हम
किसी दिल से निकाले जा रहे हैं
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ज़िन्दग़ी से रंजिशें कुछ कम नहीं हैं..
हाँ, बहुत हैं ग़म, मग़र कुछ ग़म नहीं है
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हर गुज़रते कारवाँ का शुक्रिया है
ज़िन्दग़ी तूने मुझे कितना दिया है..
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उफ़्फ़ नहीं करते तुम
जब तुम्हारे काँधे पर
अपना सर रखकर
सुक़ून से मैं आँखें बन्द
कर लिया करती हूँ..
और लगता है जैसे
तुम सीप हो मोती का..
अन्दाज़ा नहीं लगने देते,
वो काँधे तुम्हारे,
मेरी छोटी- बड़ी
सारी ख़्वाहिशों की
ज़िम्मेदारी का कितना
भार लिए हुवे हैं...
यही तो है प्यार...
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तोड़ा है वो दिल है,
काँच का टुकड़ा नहीं कोई...
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छू कर तुम्हें गुज़री थीं जो लहरें कभी
वो लौट कर साहिल तलक फ़िर आएँगी
ये फ़ासले हैं, क़ुर्बतों के फ़ासले
कुछ दूरियों पर, दूरियाँ मिट जाएँगी
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उपवन में क्यों फ़ूल सुहाने
भेद ये बस माली ही जाने
मानस पर सौ पहरे लेकिन
मन ख़ुद ही मन की ना माने
प्रेम- इत्र की पूरित कलियाँ
भ्रमर छुए तो क्यों सकुचाए
नारी! तुमको कौन लुभाए...
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क्षमा करना, क्षमा पाना ज़िन्दग़ी का सार है
पर नहीं यह मात्र एक दिवस का त्योहार है
हो निवृत्ति आत्मा पर पड़े हुवे आवरण से
ख़ुद के अन्दर झाँकना, निज निष्ठ यह व्यवहार है
ना बरस, ना दिवस कोई, सतत पश्चाताप का
क्षमा सबको, मुझे भी सबकी क्षमा स्वीकार है
🙏मिच्छामी दुक्कड़म🙏
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कभी आसमान से बरसा पानी
बदन जलाता है,
कहीं किसी के अन्तर मन में,
सावन उमड़ा जाता है
कहीं पीर के बादल फ़टते,
अँखियाँ भर- भर आती हैं
ये बारिशें...
कितना शोर मचाती हैं...
(Caption)
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