CA Jasjot Singh   (JJ)
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Joined 22 April 2020


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24 FEB AT 17:58

छोड़ गए, जो कभी साथ थे
छूट गए, जो हाथों में हाथ थे
न कोई कश्ती है न कोई रास्ता
हूं नदी के उस छोर पर
वो मुड़ कर जहां से, कभी लौटे नहीं
खड़ा हूं अब भी उसी मोड़ पर

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12 FEB AT 15:59

याद आती है जब जिन्दगी हो अंधेरे में
रोशनी आते ही फिर क्यों उन्हें भूल जाते हैं
वो लोग हमारे जीवन के दीपक से
हम क्यों उनकी कदर नहीं कर पाते हैं

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7 FEB AT 0:05

कभी जिएंगे तसल्ली से, मिला वक्त जो खुद के लिए भी
अभी खुशियां हजारों अपनो की, घर लानी बाकी है

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2 FEB AT 19:49

उड़ चलें कहीं दूर इन हवाओं संग
छोड़ सफर ए जिन्दगी के रास्ते
जहां मिल सके दो पल सुकून
जिसे रहे जीवन भर तलाशते

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21 JAN AT 19:49

वक्त नहीं है, समय नहीं है
ज़रा काम निपटा कर आते हैं
आज, कल, परसों सब व्यस्त है
आओ! लम्हे चुरा कर लाते हैं

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29 DEC 2023 AT 0:52

रहा है यहां वहां टहल
मची है कुछ चहल पहल
कुछ तो प्रश्न पल रहा है
मन के भीतर
कुछ ख्याल चल रहा है
मन के भीतर
सूरज खुशी का ढल रहा है
मन के भीतर
बहुत कुछ चल रहा है
मन के भीतर

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26 DEC 2023 AT 13:28

साँवली शाम के साए में
कैसे नीले बादल अंधेरे से हारते हैं
चांद सितारों के इंतज़ार में
बैठकर आसमान को निहारते हैं

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22 DEC 2023 AT 18:39

लड़ाई करना और देखना
सब को भा रहा है
झूठे प्यार मुहब्बत में
खूब मज़ा आ रहा है
अपने फायदे के लिए करदो
किसी का कुछ भी बुरा
ये कैसे दिन आए है
अच्छा होना बुरा है
बुरा होना ही बस अच्छा
अब ऐसे दिन आए है

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15 OCT 2023 AT 19:53

बिना सोचे समझे दागी, गोली के बदले गोलियां
रंग लाल ही चारो और, पड़ी सूनी कितनी झोलियां

ताकत, सत्ता, धर्म, इसके पीछे के कुछ निराधार तर्क
गया टूट इंसानियत से, मानो अब लोगों का संपर्क

हो कारण कोई भी, मारना, क्या ये सही है?
बेगुनाह का नुकसान, धारना, क्या ये सही है?

ये दुश्मनी ये हत्याएं, ये कब तक चलती रहेंगी?
ये अमानवीय घटनाएं, ये कब तक चलती रहेंगी?

आतंक को देना बड़ावा बस अब बंद हो
लोगों का होने बेघर
बस अब बंद हो

मौत का सन्नाटे नहीं,
पंछियों की चहचहाहट से भरा चमन चहिए
मिसाईल, गोली, युद्ध नहीं,
अब दुनिया भर में शांति और अमन चाहिए

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1 OCT 2023 AT 20:28

लगाया वक्त मेरा जिनकी मुश्किलों को कम करने में
वो रहे व्यस्त पीठ पीछे मेरे सभी को भड़काने में

सुधारकर गलतियां जिनको दिया बढ़ावा कल के लिए
वो रहे करते प्रयास हरदम मुझे ही नीचे गिराने में

मैने तो माना सभी को अपना ये बुराई के बाज़ार मे
वो जताते रहे पराया मुझे घूम घूमकर ज़माने में

ना जाने कब अच्छा मैं बन गया बुरा सभी के लिए
लगने लगा है डर अब लोगों से रिश्ते बनाने में

किसी से बात करूं भी या नहीं व्याकुल है "जेजे"
असमर्थ है बर्ताव लोगों का अपने मन को समझाने में

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