प्रेम में पड़े हर उस व्यक्ति की यह अभिलाषा होती है के वह उसी इंसान के साथ वक़्त गुजारे जिसके साथ एक ही स्थानपर होते हुए भी बात न हो रही हों लेकिन उसी वक़्त बहुत कुछ कहां, सुना और समझा जा रहा हो...। प्रेम बस एक सफ़र का नाम हैं। इस सफ़रमें हम किसे अपने एकांत का हमराह बनाते हैं उसी पर हमारे प्रेम की कहानी निर्भर होती है। इसीलिए कहते है ना, हर एक के प्रेम की शुरुआत चाहे एक सी ही क्यों न हो पर इस प्रेमकहानी का सफ़र हर एक का अलग होता हैं।
-
संध्याकाळ अशी धूसर होत असतांना
हात सोडून जाऊ नये
एखाद्याने
इतकं अलगद निघून...
नजरा पाऊलखुणांसोबत पाठपुरावा करत असतात
पाठमोऱ्या आकृतीचा...
पंखांच्या सावलीत
विणत असतं एखादं पाखरू
अलबेल असं सुरेल तराणं...
अश्या अलवार स्वप्नांमध्ये
मन रमलेले असतांनातरी
व्यवहार पूर्ण करावा ना समुद्राने
लाटांबरोबरचा
ओंजळभर वाळू
दर भेटीत किनाऱ्यावर उधळण्याचा...
---अन्वी आठलेकर-
ठहर जाएं ये वक़्त
तो तुझे आँखों में भर लूँ
इन आँखों को ज़मानेसे
फ़िर पराया ही कर दूँ...
होती रहें हर शाम यूँही
तेरी यादों की सहर
युंही अंधेरों में हो बातें
तेरी साँसों सें हर पहर...
कभी जो बात हो तुझसे
तो तेरी इबादत ही कर लूँ
तुझको थोड़ा तुझसे माँगू
थोड़ी गुज़ारिश ही कर लूँ...
ये तेरी यादों का शहर
आज गुलज़ार तो कर लूँ
ग़र ठहर जाएं ये वक़्त
तो तुझे आँखों में भर लूँ...
--- अन्वी आठलेकर✍🏻-
ये तुम्हारीही बातोंसे भरमाया हुआ मन
क्यों शामों-सवेरे अजबसी है उलझन
यूँ दिन-ब-दिन का, बस तुम ही तुम होना
क्यों ख़ामोशियों में सदा गुम ही रहना
हो आंखोसे ओझल पर बातों में हरदम
क्यों छेड़े है हमको ये यादों की सरगम
ये मन का महल और उदासी भरी बातें
के कोई सूरज आए, लपेटें ये रंगीन रातें
किसी शाम आओ, ठहरो या लौट जाओ
कोई किस्सा मोहब्बत का...सुनो या सुनाओ
मैं तुमसे ही, तुमसे ही, तुमसे ही तो हूं पूरी
क्यों फिर आए-जाए हम तुम में ये दूरी...
हम तुम में ये दूरी।
--- अन्वी आठलेकर❣️-
व्हायचे होतेच जे ते टाळुनी टळणार नसते,
आपले आयुष्य काही ईश्वरी अवतार नसते
चेहरा हसतो जगाच्या चालत्या रीतीप्रमाणे
दु:ख कुरवाळायची तर चैन परवडणार नसते ...
--- ©अनिल आठलेकर 🌿-
आबाद बारिशों में
न जाने कैसी नमी हैं.....
इक ये जिंदगी तनहासी
न जाने किस की कमी हैं.....
गुज़रते हैं कुछ लम्हें
अल्फाज़ो को तराश कर....
जो ये नज़्म हैं आज
वो भी अधूरीसी हैं....
न जाने किस तरन्नुम
की इसे तलाश हैं....
लफ्जों में मुसलसल
कुछ लम्हें लिख आये हैं....
ये जो तारीख़ हैं
गुज़र जायेगी....
न जाने वक़्त को
किस सदी का इंतज़ार हैं....
--- अन्वी आठलेकर✍🏻-
मग आसमंत हा सारा
कावरा बावरा होतो
मी होते स्पर्श हवासा
तो एक मोगरा होतो
तो एक मोगरा होतो
दरवळतो सर्व दिशांनी
अंधार सारखा द्रवतो
रात्रीच्या आर्त स्वरांनी
रात्रीच्या आर्त स्वरांनी
काळीज बोलते थेट
अन होते कैक युगांनी
ही 'जिवा-शिवाची भेट' ...
--- ©अन्वी आठलेकर🌿-
हल्ली काही बोलत नाही मनासारखी,
एक वेदना राबत असते मुक्यासारखी...
येता जाता फक्त चौकशी करते माझी
तुझी आठवणसुद्धा आहे तुझ्यासारखी...
--- अन्वी आठलेकर✍🏻-
किती गर्द आहे उदासीच येथे
जरी खोल डोहात पाणीच येथे
कुणी बुद्ध होण्यास का सिद्ध नाही
दिसे सज्ज जो तो शिकारीच येथे
---अन्वी आठलेकर🌿💙🌿-
तुम एक गहरी सुकून से भरी नींद हो मेरे लिए
मेरे इतने भी पास मत आओ...
के ये नींद टूट जाए।
-