C.A. Pavaria   (सी०ए० पवारिया)
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Joined 7 March 2019


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Joined 7 March 2019
6 APR 2021 AT 16:14

क्या होता है किसी के
जीने मरने रोने धोने से
किसी को घंटा फ़र्क़ पड़ता है
किसी के होने ना होने से
और बात तो बस इतनी सी है
के वो अपना बन के दिखाते थे
पर भाड़ में जाएँ ऐसे दोस्त
जो खेलते हैं इंसानों से
जैसे खिलोनो से

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19 OCT 2020 AT 23:42

तुझपे भी वही सब है
जो उसपे हुआ करता था
पर फिर भी
कुछ अधूरा सा लगता है
तू है तो बड़ी खूबसुरत पर
चेहरे का नूर कम सा लगता है
और क्या करूँ
गलती मेरे भी नहीं है
वो पहली थी और
पहली मुहब्बत का नशा
अलग ही ऊँचाई पकड़ता है

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18 OCT 2020 AT 22:06

हम नहीं मानते
बेशकीमती हैं आप
क्योंकि आप जैसे चिल्लर
तो हमारी जेब में पड़े फिरते हैं

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4 OCT 2020 AT 1:22

कभी कभी लोग उतना गलत होते नहीं
जितना उन्हें दिखा दिया जाता है
सिक्के का पल्लू जो होता है इस सतह पे
उसे सब देखलेते हैं और दूसरा भी है
एक पल्लू जानते हुए भी
दिमाग से हटा दिया जाता है
और फैंसलों को जल्द बाजी में ना करें आप
क्योंकि इसी छोटे कारण किसी शक्स को
दोषी ठहरा दिया जाता है

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2 OCT 2020 AT 14:00

दिल और दिमाग की जद्दोजेहद
कलम लेकर पन्ने पे निकालनी चाही
पर खुदी से विस्वास जब उठ गया
जब कलम ने भी उसी की तस्वीर बना डाली

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2 OCT 2020 AT 1:09

क्या बोलूं और कैसे चुप रहलूं
जो ये दरिंदगी है इसे कैसे मैं सेह लूं
गलती हमारी भी है जो हम चार दिन
मोमबत्तियाँ जलाके खुश होजाते हैं
और क्या कहूँ उन माँ बापों की जिन्होंने
एक फूल सा सपना सजाया था
उनके तो सभी सपने बिखर जाते हैं

और ऐसे कांड ही
कन्या भ्रूण हत्या को
बढ़ावा दे जाते हैं
वो माँ बाप रह रह कर
तड़प जाते होंगे बहुत
जब जिगर के टुकड़े को
यूँ छलनी हुआ पाते हैं

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1 OCT 2020 AT 22:09

कुछ लोग हैं महफ़िल मैं
जो बड़े गुमनाम रहते हैं
बात करते हैं तो कहते हैं के
उन्हें फिक्र है हमारी पर
समय आने पे वही
हमें अनजान कहते हैं

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1 OCT 2020 AT 22:02

रिश्तों की एहमियत ज्यादा है
पवारिया की नज़रों में
रिश्तों को बचाने के लिए
गाली खाता आया है
शायद आज भी बहुत गलियां मिलें
पर बैठके उन्ही गलियों की सेज़ पे
दो बिछड़े यारों को मिलाने की कोशिश करूँगा
और कभी अपने लिए नहीं
अपने वतन अपने यार और
अपने सारे परिवार के लिए मरूंगा

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23 SEP 2020 AT 0:08

पाया था जब तुझे तो
थोड़ा निखार सा गया था
हुआ जुदा जो तुझसे
तो थोड़ा बिखर सा गया था
तू थी तो बड़ी भोली पर
सिर्फ तेरी सूरत से
सच्चाई जानी जब
जब जिकर तेरी
सीरत का हुआ था

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22 SEP 2020 AT 0:07

आज मैं खुद को खुद में ढूढ़ने निकला
सख्शियत तो बहुत मिलीं पर
खुद को इनमे देख न सका
अपनी ही गहराईयों में खो गया था
वहाँ से निकलने का रास्ता मैं ढूढ़ ना सका
क्या इतना खुद से अनजान होगया था
के खुदी को खुद में पहचान ना सका

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