बुशरा तबस्सुम   (बुशरा तबस्सुम)
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प्रीत प्रज्ज्वलित रही शीर्ष पर
शेष सब पिघलता रहा उम्र भर
Joined 31 October 2017


प्रीत प्रज्ज्वलित रही शीर्ष पर
शेष सब पिघलता रहा उम्र भर
Joined 31 October 2017

बात करती हूँ तुमसे
तो
चुनती हूँ सबसे मुलायम शब्द
कम ही रखती हूँ
वाक्यों का विस्तार
बहुत प्रयास के बाद भी
धड़कनो की रिदम
तेज़ रहती है
आवाज़ की सरगम से
बात करती हूँ तुमसे
तो खनकती है आवाज़ ...
ज़बान ने जैसे
पहन लिए हो घुँघरू
मिला रहे जो ताल
दिल की रिदम से
बात करती हूं जब .....

🌿 बुशरा

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मेरी व्यस्तताओं की सड़क के दोनों ओर
उदासियों के जंगल हैं अंतहीन
मैं कब दिशाहीन हो
इनकी सघनता में खो जाती हूं अचानक
स्वयं नहीं जानती
न सिहरती हूं किसी याद की दहाड़ से
न किसी दुःख की चुभन से
होती हूं विचलित
अनुभव के आधार पर बस टोहते हुए
दुर्गम मार्ग
पहुंच जाती हूं इसके अंतिम छोर
वहीं
जहां से व्यस्तताएं निहारती हैं
मेरी ओर

🌿 बुशरा

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पलकों की आड़ में
सीली नींदों में अचानक
उदित हुए तुम
स्वप्न सतरंगी हो गए सारे
संग लेकर कुछ रंग
पलक-यवनिका सरका कर
दृष्टि
दूर तक भटकी
और फिर लेकर
अटकी सांसें
बना आई हर दिशा
प्रतीक्षा की रंगोली
शुभ हो तुम्हारी
हर होली

🌿

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हवा का अदृश्य होना
अक्सर बहुत खलता है मुझे
कभी-कभी करता है मन
कि कोई मन पसंद रंग
इसके तलुए पर लगा दिया जाए
नदी की ढांग पर बने पद चिह्नों को
निहारा जाए बे बात
रंग छोड़ा है जिन पर
वो पात
तोड़कर सहेज लिए जाएं किताबों में
फिर बरसात से पूर्व की उमस में
निकालकर देखें जाएं बार-बार
कि
फरवरी के अल्प दिनों में
खूब चलती थी शीतल बयार

यादों का यूं ही बेरंग बहना भी
मुझे बहुत खलता है
छोड़ो भी•••
... सब चलता है

🌿

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कभी ऐसा करो
कि हाथ पर अंकित कर चुंबन
उड़ा दो हवा में
समक्ष प्रेमिका होगी
तो पकड़ कर
हाथ फेर लेगी मांग के ठीक ऊपर
मां होगी तो सहेजेगी दोनो हाथों से
और मुट्ठियों में बंद कर
चटका देगी माथे के इर्द गिर्द
संतान होगी तो लगाकर हृदय से
झुका देगी सर
सामने होगा शत्रु
तो झिझक कर पकड़ेगा
और फिर मिलाकर एक मीठी मुस्कान
लौटा देगा
सैनिक होगा तो थामकर मुट्ठी में
ठोक देगा छाती पर
यदि
संकोच , लज्जा या अनचाही दूरियों के कारण
अनुपलब्ध हों अधर -भाल
अंकित कर हथेली पर चुंबन
उड़ा देना तत्काल

🌿 बुशरा

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नज़र कमज़ोर हो गई...
दूर का नहीं दीखता साफ
मन पटल पर कुछ दृश्य धुंधलाए से हैं

नज़र कमज़ोर हो गई ...
शब्दों की सूईंयों में नहीं पिर रही भावनाएं...
डायरी के पृष्ठों पर
उधड़ी पड़ी हैं कुछ कविताएं,

नज़र कमज़ोर हो गई
संयम की ऐनक न हो तो
भावातिरेक में लिखी कविताएं
भीग-भीग जाती हैं

कुछ लिख भेजो तो स्पष्ट लिखना
अस्पष्टता भ्रमित कर देती है अब
...
नज़र कमज़ोर जो हो गई

🌿 बुशरा

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नई उम्मीदें...
नए सवाल
चलो
मुबारक
एक और साल।

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स्वतंत्र है ह्रदय
कि चुन लें परतंत्रता
होकर किसी के अधीन
स्वच्छंद रहे
उंडेल कर समस्त प्रेम
भरा रहे सर्वदा
बेचैनियों की लहरों पर
सुकून की नाव खेवे
खुशियों के अश्रुओं से
भर दे नयन-द्वय
स्वतंत्र है
किसी के अधीन
मेरा हृदय

🌿

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डूबती हो जब कोई आस ....
निराशा के रंग से
रंग जाता हो मन-आकाश
मैं ,
गिराकर नयन पट .....
मौन के आसन पर बैठ ...
याद के पृष्ठों पर,
लिखती हूँ तुम्हे एक प्रेम पाती ,
वो सांझ
व्यर्थ नहीं जाती ;
सवेरे की अटरिया पर
उदित होती है फिर आस
मानो पहुँची हो हर चिट्ठी
तुम्हारे पास ।।

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चलो छोड़ो .....
अब नहीं लिखूँगी प्रेम रस

लिखूँगी कि गहन कुहासे में भी,
सूरज के होने के आभास भर से
फूल रहते हैं जस के तस
प्रेम नहीं लिखूंगी बस

लिखूँगी जब नहीं होता चाँद
महकती हुई रात रानी.....
रह जाती है तरस तरस
प्रेम नहीं लिखूँगी बस

लिखूँगी धरा भीगती है बहुत
उतार धूप का रूपहला आँचल
घन जब जाता है बेबाक बरस
प्रेम नहीं लिखूँगी बस
.
,

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